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Bhuri Bhuri Khak Dhool

Bhuri Bhuri Khak Dhool

by Gajanan Madhav Muktibodh

Regular price Rs 446.00
Regular price Rs 495.00 Sale price Rs 446.00
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Binding

Language: Hindi

Number Of Pages: 228

Binding: Hardcover

‘‘मुक्तिबोध एक ऐसे कवि हैं जो अपने समय में अपने पूरे दिल और दिमाग के साथ, अपनी पूरी मनुष्यता के साथ रहते हैं। वे अपनी एक ऐसी निजी प्रतीक-व्यवस्था विकसित करते हैं कि जिसके माध्यम से सार्वजनिक घटनाओं की दुनिया और कवि की निजी दुनिया एक सार्थक और अटूट संयोग में प्रकट हो सके। एक सच्चे कवि की तरह वे सरलीकरणों से इनकार करते हैं। वे विचार या अनुभव से आतंकित नहीं होते। वे यथार्थ को जैसा पाते हैं वैसा उसे समझने और उसका विश्लेषण करने की कोशिश करते हैं और उनकी कविता का एक बड़ा हिस्सा अनुभव की अनथक व्याख्या और पड़ताल का उत्तेजक साक्ष्य है। मुक्तिबोध मनुष्य के विरुद्ध हो रहे विराट षड्यंत्रा के शिकार के रूप में ही नहीं लिखते, बल्कि वे उस षड्यंत्रा में अपनी हिस्सेदारी की भी खोज करते और उसे बेझिझक जाहिर करते हैं। इसीलिए उनकी कविता निरा तटस्थ बखान नहीं, बल्कि निजी प्रामाणिकता और ‘इन्वॉल्वमेंट’ की कविता है। उनकी आवाज एक दोस्ताना आवाज है और उनके शब्द मित्रता में भीगे और करुणाभरे शब्द हैं। ब्रेख्ट की तरह उन्हें मालूम है कि ‘जो हँसता है उसे भयानक खबर बताई नहीं गई है।’ वे भयानक खबर के कवि हैं - हिन्दी में शायद अकेले। उन्होंने हमारे समय में आदमी की हालत की पूरी परिभाषा अलभ्य साहस और शक्ति से करने की अद्वितीय कोशिश की है।’’ ‘भूरी-भूरी खाक धूल’ में मुक्तिबोध की कविता की इन सभी खूबियों का एक नया स्तर खुलता है। ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’ के बाद, प्रकाशन-क्रम के लिहाज से, यह उनकी कविताओं का दूसरा संग्रह है। इसमें उनकी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित कविताएँ हैं, साथ ही अधिकांशतः ऐसी कविताएँ भी हैं जो अब तक बिल्कुल अप्रकाशित रही हैं। इन कविताओं में आज के उत्पीड़न भरे समाज को बदलने का आकुल आग्रह तथा ‘जनसंघर्षों की निर्णायक स्थिति’ में अमानवीय व्यवस्था के ‘कालान्त द्वार’ तोड़ डालने का दृढ़ संकल्प विस्मयकारी शक्ति के साथ अभिव्यक्त हुआ है। अपनी प्रचंड सर्जनात्मक उर्जा के कारण ये कविताएँ मन को झकझोरती भी हैं और समृद्ध भी करती हैं। यह आकस्मिक नहीं है कि मृत्यु के वर्षों बाद आज भी मुक्तिबोध हिन्दी के सर्वाधिक चर्चित कवि हैं।
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