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Kukurmutta

Kukurmutta

by Suryakant Tripathi 'Nirala'

Regular price Rs 95.00
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Binding

Language: Hindi

Number Of Pages: 79

Binding: Paperback

'कुकुरमुत्ता' का संशोधित संस्करण, आशा है, पाठकों को पसन्द आयेगा । इसकी व्यंग्य और भाषा आधुनिक है । अर्थ-समस्या में निरर्थकता को समूल नष्ट करना साहित्य और राजनीति का कार्य है । बाहरी लदाव हटाना ही चाहिए, क्योंकि हम जिस माध्यम से बाहर की बातें समझते हैं वह भ्रामक है, ऐसी हालत में 'इतो नष्टस्ततो भ्रष्ट: ' होना पड़ता है । किसी से मैत्री हो, इसका अर्थ यह नहीं कि हम बेजड़ और बेजर हैं । अगर हमारा नहीं रहा तो न रहने का कारण है, कार्य इसी पर होना चाहिये । हम हिन्दी-संसार के कृतज्ञ हैं, जिसने अपनी आँख पायी हैं । इस पथ में अप्रचलित शब्द नहीं । बाजार आज भी गवाही देता है कि किताब- चाव से खरीदी गई, आवृत्ति हजार कान सुनी गई और तारीफ लाख-मुँह होती रही । इसका विषय वस्तु, शिल्प, भाषिक संरचना और अभिव्यक्ति की नयी एकान्विति के कारण अद्‌भुत रूप से महत्वपूर्ण है । इन आठों कविताओं का मिजाज बिकुल एक-सा है । उनकी ताजगी, उनके शब्द- प्रयोग, उनकी गद्यात्मकता का कवित्व, भाषा का अजीब-सा छिदरा-छिदरा संघटन, अन्दर तक चीरता हुआ व्यंग्य और उन्मुक्त हास्य-क्षमता तथा कठोरता के कवच में छिपी अगाध (अप्रत्यक्ष) करुणा और उपेक्षित के उन्नयन के प्रति गहरी आस्था, 'निराला' की रचना-सक्षमता और काव्य-दृष्टि के एक नये (सर्वथा अछूते नहीं) आयाम को हमारे सामने, उद्‌घाटित करती है ।
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