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Nigahon ke Saye

Nigahon ke Saye

by Jaan Nisar Akhtar

Regular price Rs 180.00
Regular price Rs 200.00 Sale price Rs 180.00
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Binding

Language: Hindi

Binding: Hardcover

जाँ निसार अख्तर एक बोहेमियन शायर थे । उन्होंने अपनी पोइट्री में क्लासिकल ब्यूटी और मार्डन सेंसब्लिटी का ऐसा सन्तुलन किया है कि उनके शब्द खासे रागात्मक हो गए हैं । उन्होंने जो भी कहा खूबसूरती से कहा- उजड़ी-उजड़ी सी हर एक आस लगे जिन्दगी राम का बनवास लगे तू कि बहती हुई नदिया के समान तुझको देखूँ तो मुझे प्यास लगे जाँ निसार अख्तर के बेशतर अश्‍आर लोगों की जबान पर थे और हैं भी । अदबी शायरी के अलावा उन्होंने फिल्मी शायरी भी बड़ी अच्छी की है जो अदबी लिहाज से भी निहायत कामयाब रहे । जैसे- आँखों ही आखों में इशारा हो गया बैठे-बैठे जीने का सहारा हो गया या अय दिल-ए-नादाँ आरजू क्या है जुस्तजू क्या है अय दिल-ए-नाशँ फिल्मी दुनिया में दो तरह के शायर मिलते हैं । एक तो वो जिन्हें फिल्म जगत शायर बना देता है दूसरे वो जो खुद शायर होते हैं और अपने दीवान के साथ फिल्म इंडस्ट्री ज्वाइन करते हैं 1 जाँ निसार दूसरे तरह के शायर थे । फिल्म जगत में आने से पहले ही न सिर्फ वो एक स्थापित शायर थे बल्कि उनकी कई किताबें और कई नज्में-गजलें मशहूर हो चुकी थीं । 1935-36 में तरक्कीपसन्द आन्दोलन से जुड़े एक अहम शायर थे जाँ निसार अख्‍तर 1 उनके समकालीनों में सरदार जाफरी, फैज अहमद फैज और साहिर लुधियानवी प्रमुख थे । जों निसार उसी पाये के शायर थे । उनकी एक नज्म है 'आखिरी मुलाकात' जिसके बारे में मेरा अपना ख्याल है कि ये पिछले 5० सालों में उर्दू में लिखी गई एक बेहद आउट स्टेडिंग नव्य है- मत रोको इन्हें पास आने दो ये मुझसे मिलने आए हैं मैं खुद न जिन्हें पहचान सकूँ कुछ इतने धुँधले साये हैं शायर के हर इशारे के पीछे उसके जीवन का एक वाक़िया छिपा है । यही इस नज्म की खूबसूरती है और ऐसी नव्य उर्दू में सिर्फ जी निसार अक्षर ही के पास है । जी निसार अख्तर साहब कमाल अमरोहवी की 'रजिया सुलाना के सोलो सांग राइटर थे । मगर जिन्दगी ने उनके साथ बेवफाई की और फिल्म के पूरी होने से पहले ही वो जिन्दगी से रुखसत हो गए । तब जाकर कमाल साहब ने मुझे बुलाया और मैंने उस फिल्म के आखिरी दो नगमें लिखे । जाँ निसार अख्तर की बेगम सफिया अख्‍तर भी बहुत अच्छी राइटर थीं । उन्होंने एक बहुत अच्छा आर्टिकल भी लिखा था अपने शौहर जी निसार पर 'घर का भेदी' नाम से । उसमें उन्होंने लिखा था कि, 'जी निसार, ज्यादा लिखना और तेजी से लिखना बुरा नहीं है, उस्तादोंवाली बात है लेकिन मैं चाहती हूँ कि तुम रुक-रुक के और थम-थम के लिखी ।' दक बात और, तरक्कीपसन्द शायरों को आप दो-तीन कैटगरीज में बाँट सकते हैं । एक में सरदार जाफरी, कैफकी आजमी और नियाज हैदर टाइप शायर है । दूसरी में साहिर लुधियानवी और सलाम मछली शहरी टाइप शायर । लेकिन तीसरी कैटगरी में कुछ ऐसे पोइंट हैं जो निहायत म्यूजिकल भी हैं जैसे मजाज, जज्‍बों और यही जी निसार अक्षर । यही वजह है कि जाँ निसार फिल्मों में इतने कामयाब रहे । वो मध्यप्रदेश के एक बहुत ही रागात्मक क्षेत्र तानसेन की बस्ती ग्वालियर के निवासी थे । उनके शब्दों के ढलाव और सजाव में उस नगर की रागात्मकता ही नहीं है, हिन्दी और उर्दू के क्लासिकल काव्य परम्परा के जुड़ाव भी हैं । अपनी जिन्दगी अपने तौर पर जी और अपनी ही शर्तों पर साहित्य की रचना की जी निसार अक्षर ने । मैं विजय अकेला को बहुत-बहुत बधाई देता हूँ जिन्होंने इस किताब को संपादित करके फिल्म जगत के एक महत्त्वपूर्ण गीतकार को पाठकों तक पहुँचाया है और इस ओर भी इशारा किया है कि गीतकारिता में अगर साहित्य भी मिल जाए तो फिल्म-गीत भी लम्बी उम्र पा लेते हैं जैसे जी निसार के इस गीत ने पाई है- के दिल और उनकी निगाहों के साये मुझे घेर लेते हैं बाँहों के साये -निदा फाजली
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