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Rameshchandra Shah : Kahani Samagra

Rameshchandra Shah : Kahani Samagra

by Ed. Chhabil Kumar Meher

Regular price Rs 895.00
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Language: Hindi

Number Of Pages: 552

Binding: Hardcover

रमेशचन्द्र शाह हिन्दी के उन कम लेखकों में हैं, जो अपने ‘हिन्दुस्तानी अनुभव’ को अपने कोणों से देखने–परखने की कोशिश करते हैं, और चूँकि यह अनुभव स्वयं में बहुत पेचीदा, बहुमुखी और संश्लिष्ट है, शाह उसे अभिव्यक्त करने के लिए हर विधा को टोहते–टटोलते हैं. एक अपूर्व जिज्ञासा और बेचैनी के साथ । आज हम जिस भारतीय संस्कृति की चर्चा करते हैं, शाह की कहानियाँ उस संस्कृति के संकट को हिन्दुस्तानी मनुष्य के औसत, अनर्गल और दैनिक अनुभवों के बीच तार–तार होती हुई आत्मा में छानती हैं । इन कहानियों का सत्य दुनिया से लड़कर नहीं, अपने से लड़ने की प्रक्रिया में दर्शित होता है : एक मध्यवर्गीय हिन्दुस्तानी का हास्यपूर्ण, पीड़ायुक्त विलापी क़िस्म का एकालाप, जिसमें वह अपने समाज, दुनिया, ईश्वर और मुख्यत% अपने ‘मैं’ से बहस करता चलता है । शाह ने अपनी कई कहानियों में एक थके–हारे मध्यवर्गीय हिन्दुस्तानी की ‘बातूनी आत्मा’ को गहन अन्तर्मुखी स्तर पर व्यक्त किया है : उस डाकिए की तरह, जो मन के सन्देशे आत्मा को, आत्मा की तक़लीफ देह को और देह की छटपटाहट मस्तिष्क को पहुँचाता रहता है । इन सबको बाँधनेवाला तार उनकी शैली के अद्भुत ‘विट’ मंे झनझनाता है.भाषा के साथ एक अत्यन्त सजग, चुटीला और अन्तरंग खिलवाड़, जिसमें वे गुप्त खिड़की से अपने कवि को भी आने देते हैं । पढ़कर जो चीज याद रह जाती है, वे घटनाएँ नहीं, कहानी के नाटकीय प्रसंगों का तानाबाना भी नहीं, परम्परागत अर्थ में कहानी का कथ्य भी नहीं, किन्तु याद रह जाती है एक हड़बड़ाए भारतीय बुद्धिजीवी की भूखी, सर्वहारा छटपटाहटय जिसमें कुछ सच है, कुछ केवल आत्मपीड़ा, लेकिन दिल को बहलानेवाली झूठी तसल्ली कहीं भी नहीं ।’’                       

--निर्मल वर्मा

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