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Baa Izzat Bari?

Baa Izzat Bari?

by Manisha Bhalla

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Binding

Number Of Pages: 296

Binding: Paperback

सत्ता और सिस्टम ने मिलकर इलज़ाम लगाया, एक तरफा जांच की और जो लोग शिकार बने उन्हें क़ानून की उन दफाओं में लपेट कर अंधेरी काल कोठरियों में धकेल दिया जिनमें न सफाई देने का मौक़ा था, न बचाव का रास्ता और न अपनी बात कहने का हक़। एक खास मज़हब के यह नौजवान बरसों बरस जेलों में सड़ते रहे और कई साल बाद सुबूतों के अभाव में उन्हीं अदालतों से ‘बाइज़्ज़त बरी’ हो गए जहां से इन्हें मुलज़िम बनाकर ज़ुल्म के दरिया में धकेला गया। यह किताब न सिर्फ उन नौजवानों की दर्द भरी दास्तानें सुनाती है बल्कि इन दास्तानों को मुल्क की यादाश्त में ज़िंदा रखने का फर्ज़ अदा करती है। यह बताती है कि इन नौजवानों को मिला इंसाफ अभी क्यों अधूरा है। अदालतों ने उनको ‘बाइज़्ज़त बरी’ कर दिया लेकिन समाज से वो आज तक बरी नहीं हो पाए। जेल में जाते ही लोगों ने उनसे मुंह मोड़ लिया, उनकी औरतें इंतज़ार में बूढ़ी हो गईं और मां-बाप राह तकते-तकते दुनिया से गुज़र गए।
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