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Krishnavtar : Vol. 5 : Satyabhama

Krishnavtar : Vol. 5 : Satyabhama

by K M Munshi

Regular price Rs 164.00
Regular price Rs 175.00 Sale price Rs 164.00
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Binding

Language: Hindi

Number Of Pages: 164

Binding: Paperback

कृष्ण-चरित की अनेकानेक विलक्षण घटनाओं को ऐतिहासिक और तर्कसंगत ढंग से उद्घाटित और व्याख्यायित करने वाली वृहद् औपन्यासिक कृति कृष्णाावतार का पाँचवाँ खंड है सत्यभामा। पूर्व प्रकाशित खंड हैं- वंशी की धुन, रुक्मिणी-हरण, पाँच पांडव और महाबली भीम। ‘सत्यभामा’ के रूप में मुंशीजी ने ऐसी नारी का अंकन किया है जो बचपन से ही स्वयं को कृष्ण-प्रिया मानती है और फिर उनके योग्य ‘वीर-पत्नी’ बनने का संकल्प लेकर भीषण कठिनाइयों में कूद पड़ती है। महत्त्वपूर्ण यह कि ये कठिनाइयाँ उसके धनाढ्य पिता सत्राजित द्वारा खड़ी की गई हैं जो कृष्ण के प्रति घोर शत्रु-भाव रखता है और अपनी अकूत संपदा का उपयोग राज्य-हित के विरुद्ध अपने ही वैभव-विलास को बढ़ाने में करता आ रहा है। कृष्ण इसके विरुद्ध हैं। इससे क्षुब्ध सत्राजित स्यमंतक मणि के बहाने कृष्ण के विरुद्ध षड्यंत्र रचता है। सत्यभामा इसे जानती है, इसलिए कृष्ण को बिना बताए उनके मित्र सात्यिक को साथ लेकर उस षड्यंत्र को विफल करने के लिए अंतहीन जोखिमों से टकराती है और अंततः कृष्ण का विश्वास जीत लेने में सफल होती है। इस कथा के माध्यम से मुंशीजी ने जहाँ संपत्ति के धर्मसम्मत उपभोग की आवश्यकता को रेखांकित किया है, वहीं तत्कालीन वन्य जीवन के बाह्याचारों, लोक - विश्वासों और वातावरण का भी लोमहर्षक चित्रण किया है। निश्चय ही इस गं्रथमाला का यह एक और महत्त्वपूर्ण खंड है।
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