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Kunti

Kunti

by Sushil Kumar

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Author: Sushil Kumar

Languages: english, hindi

Number Of Pages: 272

Binding: Hardcover

Release Date: 01-12-2009

Details: कालजयी महाकाव्य महाभारतका अभिनंदन पंचम वेदकहकर किया जाता रहा है । इस बृहद् ग्रंथ के संबंध में मान्यता रही है कि जो महाभारत में नहीं है,वह कहीं नहीं है ।इसमें संदेह नहीं कि महाभारत की विराट कथावस्तु में भारतीय जनजीवन का समग्र चित्र उपलब्ध है । उसके हर अंग का स्पर्श करनेवाली अनेकश, मर्मवेधी घटनाओं का समावेश है । बृहद् सामाजिक परिवेश तथा जनजीवन की स्थूल भौतिक स्थितियों के साथसाथ अध्यात्म एवं ज्ञान की उच्चतम स्थापनाओं से संपन्न यह महाग्रंथ भारतीय संस्कृति का विश्वकोश माना जाता है । इसकी आधारभूत संकल्पनाएं ही वर्तमान भारतीय सभ्यता एवं समाज की आधारभूमि रही हैं । स्वभावतः इस महाकाव्य की समर्थ नारियां हमारी संस्कृति के लिएविशेषकर भारतीय स्त्री के लिएदीपस्तंभ की ज्योति की भांति युगों से दिशानिर्देश करती रही हैं । कुंती उनमें से एक है : महाभारत के नारीपात्रों में कुंती नारी के महानतम रूप मातृत्व की पराकाष्ठा है । वह मथुरा के यादवों तथा राजा कुंतिभोज जैसे दोदो बलशाली कुलों की राजकन्या थी और फिर हस्तिनापुर के कुरुराज पांडु की राजमहिषी बनी । किंतु उसका अधिकांश जीवन हिमालय की उपत्यकाओं तथा दुर्गम वनों में बीता । कन्यावस्था में ही वह एक बलशाली पुत्र की मां बनी । फिर तीन अपने तथा अपनी सपत्नी माद्री के दो पुत्रों को लेकर उनके लालनपालन तथा पोषण में लगी रहीं । उसके पुत्रों की हत्या के षड्यंत्र होते रहेय वह स्वयं उन्हें लेकर दुर्गम स्थानों में भटकती रही । पांचों पुत्रों के प्रति उसका समान स्नेह था । कन्यावस्था में जन्मे अपने पुत्र का रहस्य हृदय में छिपाए वह जीवनभर उसके लिए तड़पती रही । सामने पाकर भी उसे हृदय से नहीं लगा सकी । तो भी उसने अपने मातृत्व का कर्तव्य अविचल रहकर निभाया ।

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