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Laalbatti Ki Amritkanyaanyen

Laalbatti Ki Amritkanyaanyen

by Kusum Khemani

Regular price Rs 182.00
Regular price Rs 199.00 Sale price Rs 182.00
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Binding

Language: Hindi

Number Of Pages: 151

Binding: Paperback

कुसुम खेमानी का यह उपन्यास ‘लालबत्ती की अमृतकन्याएँ’ कथावस्तु की दृष्टि से एक साहसिक कदम माना जा सकता है क्योंकि यह वह इलाका है जिस पर लिखने से हिन्दी लेखकों की कलम प्राय: गुरेज करती है। फिर भी इस दिशा में कुछ उल्लेखनीय कृतियाँ तो देखने को मिलती ही हैं, यह उपन्यास उसी शृंखला की नवीनतम कड़ी है। यों उपन्यास कोलकाता के ‘सोनागाछी’ पर केन्द्रित है लेकिन यह लालबत्ती गली हर शहर और हर कस्बे में होती है और अन्त:सलिला की तरह समाज के अन्तर में बहती रहती है। समाज इन स्त्रियों को विषकन्याएँ मानता है पर दरअसल ये समाज के भीतर छिपी गन्दगी को फैलने से रोकने के साथ ही उसका परिष्करण भी करती हैं और इस बिन्दु पर आकर ये ‘विषकन्याएँ’ अमृतकन्याओं में बदल जाती हैं। उपन्यास की कथा विष से अमृत की ओर बढऩे की संघर्ष-गाथा है क्योंकि उपन्यास की पात्र वे स्त्रियाँ हैं, जिन्हें अमृत से वंचित कर ‘विष’ की ओर ढकेल दिया गया है। उपन्यास में इन स्त्रियों की रोज़-रोज़ की प्रताडऩा, अपमान और हत्या जैसे रोंगटे खड़े कर देनेवाले प्रसंगों का चित्रण कुसुम खेमानी ने जिस भाषाई कौशल और शिल्पगत दक्षता के साथ किया है, वह देखते ही बनता है। पहला पन्ना खोलते ही उपन्यास किसी रोचक फिल्म की तरह हमारे सामने खुलता चला जाता है। यह बतरस शैली डॉ. कुसुम खेमानी का अपना निजी और विशिष्ट कौशल है जो पाठकों को अन्त तक बाँधे रखता है। उपन्यास की कथा में सहारा देनेवाले हाथों का सन्दर्भ ही नहीं है बल्कि इन पतिता स्त्रियों द्वारा गिरकर खुद उठने और सँभलने की कोशिशों का कलात्मक मंथन भी है। ‘लावण्यदेवी’, ‘जडिय़ाबाई’ और ‘गाथा रामभतेरी’ जैसे उपन्यासों से गुज़रने के बाद, निस्सन्देह; यहाँ यह कहा जा सकता है कि इतनी खूबियों से भरा-पूरा यह उपन्यास अगर किसी का हो सकता है, तो वह सिर्फ कुसुम खेमानी का हो सकता है। —एकान्त श्रीवास्तव
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