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Soochna Ka Adhikar

Soochna Ka Adhikar

by Arvind Kejariwal

Regular price Rs 159.00
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Binding

Language: Hindi

Number Of Pages: 162

Binding: Paperback

राजशाही में व्यक्ति और समाज के पास कोई अधिकार था, तो सिर्फ इतना कि वह सत्तावर्ग की आज्ञा का चुपचाप पालन करे। राजा निरंकुश था, सर्वशक्तिमान। उस पर कोई उँगली नहीं उठा सकता था, न उसे किसी चीज के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता था। औद्योगिक क्रांति तथा उदारवाद के आगमन और लोकतांत्रिक शासन पद्धतियों के प्रारम्भ के साथ ही नागरिक स्वतंत्राता की अवधारणा आई। इसके बावजूद द्वितीय विश्वयुद्ध तक प्रजातांत्रिक देशों में भी शासनतंत्रा में ‘गोपनीयता’ एक स्वाभाविक चीज बनी रही। विभिन्न दस्तावेजों में कैद सूचनाओं को ‘गोपनीय’ अथवा ‘वर्गीकृत’ करार देकर नागरिकों की पहुँच से दूर रखा गया। लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था के बावजूद राजनेताओं एवं अधिकारियों में स्वयं को ‘शासक’ या ‘राजा’ समझने की प्रवृत्ति हावी रही। यही शासकवर्ग आज भारतीय लोकतंत्रा का असली मालिक है। नागरिक का पाँच साल में महज एक वोट डाल आने का बेहद सीमित अधिकार इतना निरुत्साहित करनेवाला है कि चुनावों में बोगस वोट न पड़ें तो मतदान का प्रतिशत तीस-चालीस फीसदी भी न पहुँचे। यही कारण है कि अक्तूबर 2005 से लागू सूचनाधिकार लोकतांत्रिक राजा की सत्ता के लिए गहरे सदमे के रूप में आया है। राजनेता और नौकरशाह हतप्रभ हैं कि इस कानून ने आम नागरिक को लगभग तमाम ऐसी चीजों को देखने, जानने, समझने, पूछने की इजाजत दे दी है, जिन पर परदा डालकर लोकतंत्रा को राजशाही अंदाज में चलाया जा रहा था। इस पुस्तक में संकलित उदाहरणों में आप देख पाएँगे कि किस तरह लोकतांत्रिक राजशाही तेजी से अपने अंत की ओर बढ़ रही है। साथ ही इस पुस्तक में यह भी बताया गया है कि हम अपने इस अधिकार का प्रयोग कैसे करें।
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