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Aaj Aur Aaj Se Pahale

Aaj Aur Aaj Se Pahale

by Kunwar Narain

Regular price Rs 699.00
Regular price Rs 795.00 Sale price Rs 699.00
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Binding

Language: Hindi

Number Of Pages: 272

Binding: Hardcover

अगर यह संचयन ' साहित्य के प्रति निष्ठा से समर्पित एक रचनाकार की सोच-समझ का छोटा-सा किन्तु प्रमाणिक जीवन भर होता तो मूल्यवान होते हुए भी वह गहरी विचारोत्तेजना का वैसा स्पंदित दस्तावेज न होता जैसा कि वह है ! कुंवर नारायण आधुनिक दौरे के कवि-आलोचकों की उस परंपरा के हैं जिसमे अज्ञेय और मुक्तिबोध, विजयदेव नारायण साही और मलयज आदि रहे हैं और जिसे पिछली अधसदी में हिंदी की केंद्रीय आलोचना कहा जा सकता है ! अपने समय और समाज को, अपने साहित्य और समकालीनों को, अपनी उलझनों-सरोकारों और संघर्ष को समझने-बूझने और उन्हें मूल्यांकित करने के लिए नए प्रत्यय, नई अवधारणाए और नए औजार इसी आलोचना ने खोजे और विन्यस्त किए हैं ! कुंवर नारायण का वैचारिक खुलापन और तीक्ष्णता, सुरुचि और सजगता तथा बौद्धिक अध्यवसाय उन्हें एक निरीक्षक और विवेचक की तरह 'अपने समय और समाज पर चौकन्नी नजर' रखने में सक्षम बनाते हैं ! यह संचयन कुंवर नारायण का हिंदी परिदृश्य पर पिछले चार दशकों से सक्रिय बने रहने का साक्ष्य ही नहीं, उनकी दृष्टि की उदारता, उनकी रुचि की पारदर्शिता और उनके व्यापक फलक का भी प्रमाण है ! प्रेमचंद, यशपाल, भगवतीचरण वर्मा, हजारीप्रसाद द्विवेदी से लेकर अज्ञेय, शमशेर, नेमिचंद्र जैन, मुक्तिबोध, रघुवीर सहाय, निर्मल वर्मा, श्रीकांत वर्मा, सर्वेश्वरदयाल सक्सेना, श्रीलाल शुक्ल, अशोक वाजपेयी तक उनके दृष्टिपथ में आते हैं और उनमे से हरेक के बारे में उनके पास कुछ-न-कुछ गंभीर और सार्थक कहने को रहा हैं! इसी तरह कविता, उपन्यास, कहानी, आलोचना, भाषा आदि सभी पर उनकी नजर जाती रही है ! जो लोग साहित्य और हिंदी के आज और आज के पहले को समझना और अपनी समझ को एक बृहत्तर प्रसंग में देखना-रखना चाहते हैं उनके लिए यह एक जरूरी किताब है ! कुवर नारायण में समझ का धीरज है, अपना फैसला आयद करने की उतावली नहीं है और ब्योरों को समझने में एक कृतिकार का अचूक अनुशासन है ! हिंदी आलोचना आज जिन थोड़े से लोगों से अपना आत्मविश्वास और विचार-उर्जा साधिकार पाती है ! उनमे निश्चय ही कुंवर नारायण एक है ! यह बात अचरज की है कि यह कुंवर नारायण की पहली आलोचना-पुस्तक है ! बिना किसी पुस्तक के दशकों तक अपनी आलोचनात्मक उपस्थिति अगर कुंवर नारायण बनाए रख सके है तो इसलिए कि उनका आलोचनात्मक लेखन लगातार धारदार और जिम्मेदार रहा है !
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