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Aamool Kranti Ka Dhwaj-Vahak Bhagatsingh

Aamool Kranti Ka Dhwaj-Vahak Bhagatsingh

by Ranjeet

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Binding

Language: Hindi

Number Of Pages: 131

Binding: Hardcover

भगतिंसह को यदि माक्र्सवादी ही कहना हो, तो एक स्वयंचेता या स्वातन्त्र्यचेता माक्र्सवादी कहा जा सकता है। रूढ़िवादी माक्र्सवादियों की तरह वे हिंसा को क्रान्ति का अनिवार्य घटक या साधन नहीं मानते। वे स्पष्ट शब्दों में कहते हैं—क्रान्ति के लिए सशस्त्र संघर्ष अनिवार्य नहीं है और न ही उसमें व्यक्तिगत प्रतिहिंसा के लिए कोई स्थान है। वह बम और पिस्तौल का सम्प्रदाय नहीं है।’अन्यत्र वे कहते हैं—हिंसा तभी न्यायोचित हो सकती है जब किसी विकट आवश्यकता में उसका सहारा लिया जाय। अिंहसा सभी जन-आन्दोलनों का अनिवार्य सिद्धान्त होना चाहिए।’ आज जब भगतसिंह के समय का बोल्शेविक ढंग समाजवाद मुख्यत: जनवादी मान-मूल्यों की निरन्तर अवहेलनाओं के कारण, समता-स्थापन के नाम पर मनुष्य की मूलभूत स्वतन्त्रता के दमन के कारण, ढह चुका है, यह याद दिलाना जरूरी लगता है कि स्वतन्त्रता उनके लिए कितना महत्त्वपूर्ण मूल्य था। स्वतन्त्रता को वे प्रत्येक मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार घोषित करते हैं। क्योंकि वे अराजकतावाद के माध्यम से माक्र्सवाद तक पहुँचे थे, इसलिए स्वतन्त्रता के प्रति उनके प्रेम और राजसत्ता के प्रति उनकी घृणा ने उन्हें कहीं भी माक्र्सवादी जड़सूत्रवाद का शिकार नहीं होने दिया।
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