Author: Manohar Puri
Languages: Hindi
Number Of Pages: 184
Binding: Hardcover
Package Dimensions: 9.1 x 6.6 x 1.1 inches
Release Date: 01-12-2018
Details: भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में आपातकाल के जख्म बड़े गहरे हैं। ‘आपातनामा’ उस काली रात की दास्तान है, जिसने उन्नीस महीने तक प्रजातंत्र के सूर्य को उगने ही नहीं दिया। सत्ता का नशा कैसे भ्रष्ट व्यक्तियों को जन्म देता है, यह ‘आपातनामा’ उपन्यास के कथानक से झलकता है। कैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, नौकरशाहों और नेताओं के पास बंदी बना ली गई थी। कैसे न्यायपालिका को कार्यपालिका के हाथों की कठपुतली बनाकर नचाया जा रहा था। देश में किस प्रकार से अराजक तत्त्व मनमानी करने लगे थे और किस प्रकार से तानाशाही को खुलकर खेलने का अवसर मिल रहा था, यह सब इस कथानक के मूल मुद्दे हैं। ‘आपातनामा’ में आपातकाल की हकीकत को बड़ी ही संजीदगी से मर्मस्पर्शी शैली में अभिव्यक्त किया गया है। सरकार के मौखिक आदेश लोगों पर इस कदर कहर बरसा रहे थे कि कुछ लोग अंग्रेजों के दमनचक्र से भी अधिक खौफनाक दौर से गुजरने लगे थे। सरकार की अमानुषिक एवं आतंकित कर देनेवाली गतिविधियों से बेबस, समझौतापरस्त, उदासीन जनता को लेखक ने विद्रोह-चेतना का हथौड़ा मारकर जगाया है, जिसे वह क्रांति का लघुदर्शन मानता है, ताकि संसदीय प्रजातंत्र का मजाक न बन सके, अभिव्यक्ति की आजादी कुंठित न हो और व्यक्ति के मौलिक अधिकार सुरक्षित रहें।.