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Abhishapt

Abhishapt

by Yashpal

Regular price Rs 67.00
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Binding

Number Of Pages: 142

Binding: Paperback

यशपाल के लेखकीय सरोकारों का उत्स सामाजिक परिवर्तन की उनकी आकांक्षा, वैचारिक प्रतिबद्धता और परिष्कृत न्याय-बुद्धि है। यह आधारभूत प्रस्थान बिन्दु उनके उपन्यासों में जितनी स्पष्टता के साथ व्यक्त हुए हैं, उनकी कहानियों में वह ज्यादा तरल रूप में, ज्यारा गहराई के साथ कथानक की शिल्प और शैली में न्यस्त होकर हाते हैं। उनकी कहानियों का रचनाकाल चालीस वर्षों में फैला हुआ है। प्रेमचन्द के जीवनकाल में ही वे कथा-यात्रा आरम्भ कर चुके थे, यह अलग बात है कि उनकी कहानियों का प्रकाशन किंचित् विलम्ब से आरम्भ हुआ। कहानीकार के रूप में उनकी विशिष्टता यह है कि उन्होंने प्रेमचन्द के प्रभाव से मुक्त और अछूते रहते हुए अपनी कहानी-कला का विकास किया। उनकी कहानियों में संस्कारगत जड़ता और नए विचारों का द्वन्द्व जितनी प्रखरता के साथ उभरकर आता है, उसने भविष्य के कथाकारों के लिए एक नई लीक बनाई, जो आज तक चली आती है। वैचारिक निष्ठा, निषेधों और वर्जनाओं से मुक्त न्याय तथा तर्क की कसौटियों पर खरा जीवनाµये कुछ ऐसे मूल्य हैं जिनके लिए हिन्दी कहानी यशपाल की ऋणी है। ‘अभिशप्त’ कहानी संग्रह में उनकी ये कहानियाँ शामिल हैं: दास धर्म, अभिशप्त, काला आदमी, समाधि की धूल, रोटी का मोल, छलिया नारी, चार आने, चूक गयी, आदमी का बच्चा, पुलिस की दफा, रिजक, भगवान किसके?, नमक हलाल, पुनिया की होली, हवाखोर और शम्बूक।

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