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Agnigarbh

Agnigarbh

by Mahashweta Devi

Regular price Rs 179.10
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Binding

Language: Hindi

Number Of Pages: 226

Binding: Paperback

पश्चिम बंगाल समेत पूरे भारतवर्ष में भूमिहीन किसानों के असंतोष और विद्रोह का इतिहास समकालीन घटना-मात्र नहीं है। आधुनिक इतिहास के हर पर्व में विद्रोह का प्रयास, उनके प्रति दूसरे वर्ग के शोषण के चरित्र को प्रकट करता है, जो अब तक प्रायः अपरिवर्तनीय बना हुआ है। दार्जिलिंग जिले के नक्सलबाड़ी, खड़ीबाड़ी और फाँसी से लगनेवाले अंचल के अधिकांश भाग के रहनेवाले आदिवासी भूमिहीन किसान हैं। उनमें मेदी, लेप्चा, भोटिया, संथाल, उराँव, राजबंसी और गोरखा संप्रदाय के लोग हैं। स्थानीय जमींदारों ने बहुत दिनों से चली आ रही ‘अधिया’ की व्यवस्था में उन पर अपना शोषण जारी रखा है। इस व्यवस्था के नियम के अनुसार ज़मींदार भूमिहीन किसानों को बीज के लिए धान, हल-बैल, खाना और मामूली पैसे देकर अपने खेत में काम पर लगाते और उपज का अधिकांश भाग ज़मींदार के घर जाता। ऐसे में वे लोग सामंती हिंसा के विरुद्ध हिंसा को चुन लें तो क्या आश्चर्य? अग्निगर्भ का संथाल किसान बसाई टुडू किसान-संघर्ष में मरता है। लाश जलने के बावजूद उसके फिर सक्रिय होने की खबर आती है। बसाई फिर मारा जाता है। वह अग्निबीज है और अग्निगर्भ है सामंती कृषि-व्यवस्था। महाश्वेता देवी मानती हैं कि इस धधकते वर्ग-संघर्ष को अनदेखा करने और इतिहास के इस संधिकाल में शोषितों का पक्ष न लेनेवाले लेखकों को इतिहास माफ नहीं करेगा। असंवेदनशील व्यवस्था के विरुद्ध शुद्ध, सूर्य-समान क्रोध ही उनकी प्रेरणा है। एक अत्यन्त प्रेरक कृति।
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