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Akbar Allahabadi Par Ek Aur Nazar

Akbar Allahabadi Par Ek Aur Nazar

by Shamsur Rahman Faruqi

Regular price Rs 180.00
Regular price Rs 200.00 Sale price Rs 180.00
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Binding

Language: Hindi

Binding: Hardcover

उर्दू के विख्यात आलोचक, उपन्यासकार, कवि शम्सुर्रहमान फ़ारुक़ी के ये तीन आलेख अकबर इलाहाबादी को एक नये ढंग से देखते हैं

उर्दू के विख्यात आलोचक, उपन्यासकार, कवि शम्सुर्रहमान फ़ारुक़ी के ये तीन आलेख अकबर इलाहाबादी को एक नये ढंग से देखते हैं और अकबर की कविता और उनके चिन्तन को बिलकुल नये मायने देते हैं। आमतौर पर व्यंग्य को दूसरी श्रेणी का साहित्य कहा जाता रहा है। यह इस कारण भी हुआ कि अंग्रेज़ी साम्राज्य शिक्षण की रोशनी में अकबर के विचार पुराने, और पुराने ही नहीं पीछे की तरफ लौट जाने का तक़ाज़ा करते मालूम होते थे। शम्सुर्रहमान फ़ारुक़ी ने पहली बार इस भ्रम को तोड़ा है और इन आलेखों में बताया है कि व्यंग्य को दूसरी श्रेणी का साहित्य कहना बहुत बड़ी भूल है। वे अकबर इलाहाबादी को उर्दू के छः सबसे बड़े शायरों में मानते हैं। उन्होंने यह भी बताया है कि अकबर नई चीज़ों के खि़लाफ नहीं थे, मगर वो यह भी जानते थे कि अंग्रेज़ों ने ये नई चीज़ें हिन्दुस्तानियों के उद्धार के लिये नहीं बल्कि अपनी उपनिवेशीय शक्तियों को फैलाने और बढ़ाने के लिये स्थापित की थी। फ़ारुक़ी इन आलेखों में बताते हैं कि कल्चर भी उपनिवेशीय आक्रमण का प्रतीक और माध्यम बन जाता है।
अकबर कहते हैं कि अंग्रेज़ पहले तो तोप लगाकर साम्राज्य को क़ायम करते हैं फिर ग़ुलामों की ज़हनियत को अपने अनुकूल बनाने के लिये उन्हें अपने ढंग की तालीम देते हैं। फ़ारुक़ी कहते हैं कि इन बातों से साफ ज़ाहिर होता है कि तथाकथित उन्नति लाने वाली चीज़ों के पीछे दरअसल उपनिवेश और साम्राज्य को फैलाने की पॉलिसी थी। उनका कहना है कि अकबर इलाहाबादी पहले हिन्दुस्तानी हैं जिन्होंने इस बात को पूरी तरह महसूस किया और साफ-साफ बयान किया।


फ़ारुक़ी पहले आलोचक हैं जिन्होंने इन आलेखों में अकबर इलाहाबादी और उनके व्यंग्य को, पोस्ट कोलोनियल दृष्टिकोण से देखने की भरपूर कोशिश की है।

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