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by Suryakant Tripathi 'Nirala'
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Number Of Pages: 154
Binding: Paperback
इस उपन्यास में निराला ने अवध क्षेत्र के किसानों और जनसाधारण के अभावग्रस्त और दयनीय जीवन के चित्रण किया है! पृष्ठभूमि में स्वाधीनता आन्दोलन का वह चरण है जब पहले विश्वयुद्ध के बाद गांधीजी ने आन्दोलन की बागडोर अपने हाथों में ली थी! यही समय था जब शिक्षित और संपन्न समाज के अनेक लोग आन्दोलन में कूड़े जिनमें वकील-बेरिस्टर और पूंजीपति तबके के नेता मुख्या रूप से शामिल थे! इस नेतृत्व का एक हिस्सा किसानों-मजदूरों के आन्दोलन को भरने देने के पक्ष में नहीं था! निराला ने इस उपन्यास में इस निहित वर्गीय स्वार्थ का स्पष्ट उल्लेख किया है!
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