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Apsara Ka Shap
Apsara Ka Shap
by Yashpal
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Number Of Pages: 92
Binding: Paperback
स्वातंत्रयोत्तर भारत के शिखरस्थ लेखकों में प्रमुख, यशपाल ने अपने प्रत्येक उपन्यास को पाठक के मन-रंजन से हटाकर उसकी वैचारिक समृद्धि को लक्षित किया है ! विचारधारा से उनकी प्रतिबद्धता ने उनकी रचनात्मकता को हर बार एक नया आयाम दिया, और उनकी हर रचना एक नए तेवर के साथ सामने आई ! 'अप्सरा का शाप' में उन्होंने दुष्यंत-शकुंतला के पौराणिक आख्यान को आधुनिक संवेदना और तर्कणा के आधार पर पुनराख्यायित किया है ! यशपाल के शब्दों में : 'शकुंतला की कथा पतिव्रत धर्म में निष्ठां की पौराणिक कथा है ! महाभारत के प्रेणता तथा कालिदास ने उस कथा का उपयोग अपने-अपने समय की भावनाओं, मान्यताओं तथा प्रयोजनों के अनुसार किया है ! उन्हीं के अनुकरण में 'अप्सरा का शाप' के लेखक ने भी अपने युग की भावना तथा दृष्टि के अनुसार शकुंतला के अनुभवों की कल्पना की है !' उपन्यास की केन्द्रीय वस्तु दुष्यंत का शकुन्तला से अपने प्रेम सम्बन्ध को भूल जाना है, इसी को अपने नजरिए से देखते हुए लेखक ने इस उपन्यास में नायक 'दुष्यंत' की पुनर्स्थापना की है और बताया है कि नायक ने जो किया, उसके आधार पर आज के युग में उसे धीरोदात्त की पदवी नहीं दी जा सकती !
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