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Beech Mein Vinay

Beech Mein Vinay

by Swayam Prakash

Regular price Rs 179.10
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Binding

Language: Hindi

Binding: Paperback

अपनी प्रगतिशील रचना-दृष्टि के लिए सुपरिचित कथाकार स्वयं प्रकाश की विशेषता यह है कि उनकी रचना पर विचारधारा आरोपित नहीं होती बल्कि जीवन-स्थितियों के बीच से उभरती और विकसित होती है, जिसका ज्वलंत उदाहरण है यह उपन्यास । बीच में विनय की कथा- भूमि एक कस्बा है, एक ऐसा कस्बा जो शहर की हदों को छूता है । वहाँ एक डिग्री कालिज है और है एक मिल । कालिज में एक अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं भुवनेश-विचारधारा से वामपंथी, मार्क्सवादी सिद्धांतों के ज्ञाता । दूसरी तरफ मिल-मजदूरों की यूनियन के एक नेता है -कामरेड कहलाते हैं, खास पढ़े-लिखे नहीं । मार्क्सवाद का पाठ उन्होंने जीवन की पाठशाला में पड़ा है । और इन दो ध्रुवों के बीच एक युवक है विनय -वामपंथी विचारधारा से प्रभावित । प्रोफेसर भुवनेश उसे आकर्षित करते हैं, कामरेड उसका सम्मान करते हैं और उसे स्नेह देते हैं । वह दोनों के बीच में है लेकिन वे दोनों यानी कामरेड और प्रोफेसर तीन -छह का रिश्ता है उनमें -दोनों एक -दूसरे मे, एक -दूसरे की कार्यशैली को नापसंद करते है । विनय देखता है दोनों को और शायद समझता भी है कि यह साम्यवादी राजनीति की विफलता है । लेकिन उसके समझने से होता क्या है कस्बे की धड़कती हुई जिंदगी और प्राणवान चरित्रों के सहारे स्वयं प्रकाश ने यह दिखाने की कोशिश की है कि वहाँ के वामपंथी किस प्रकार आचरण कर रहे थे । लेकिन क्या उनका यह आचरण उस कस्बे तक ही सीमित है? क्या उसमें पूरे देश के वामपंथी दोलन की छाया दिखाई नहीं देती है? स्वयं प्रकाश की सफलता इसी बात में है कि उन्होंने थोड़ा कहकर बहुत कुछ को इंगित कर दिया है । संक्षेप में कहें तो यह उपन्यास भारत के साम्यवादी दोलन के पचास सालों की कारकर्दगी पर एक विचलित कर देनेवाली टिप्पणी है 1 एक उत्तेजक बहस । एक जड़ताभंजक और निर्भीक हस्तक्षेप ।
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