‘चाक’ मैत्रेय पुष्पा की अद्भुत लेखन-शैली में जीवन के जद्दोजहद की कथा कहनेवाला उपन्यास है, जिसका सन्देश है कि निर्माण और क्षरण की प्रक्रिया अनवरत एक साथ चलती है। ‘चाक’ की तरह चलता रहता है - समय चक्र। चाक घूमता है और मिट्टी को बिगाड़कर नए शक्ल में ढालता है। यही चाक अतरपुर गाँव की एक किसान पत्नी सारंग को भी ढाल कर कुछ बना रहा है। ‘सारंग’ इस उपन्यास की मुख्य पात्र है और अतरपुर, जाटों का गाँव जहाँ परिवर्तन की तेज़ हवा बह रही है। उपन्यास के स्वाभाविक से लगनेवाले नाटकीय घटना-क्रम में सारंग समझ भी नहीं पाती कि वह इस परिवर्तन या विकास की शिकार है या सूत्रधार? उपन्यास में रीति-रिवाज़ों, जाति-संघर्षों, गीतों-उत्सवों, नृशंसताओं-प्रतिहिंसाओं, प्यार-ईर्ष्याओं और कर्मकांडी अन्धविश्वासों का अद्भुत संजाल है। अतरपुर के बहाने सम्पूर्ण ब्रज प्रदेश की मानवीय संवेदनाएँ इस उपन्यास को जीवन्त बनाती हैं। दिलचस्प कथा-प्रवाह में परिवर्तनशील जीवन की जिजीविषा अपने उत्कर्ष कर पहुँचकर उपन्यास की सार्थकता रेखांकित करती है। राजनीति और समाजशास्त्र के बीच से निकलती उपन्यास की कथा पाठकों के मन तक पहुँचकर विराम पाती है - लम्बी ऊसाँस बनकर!
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