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Dastangoi 2

Dastangoi 2

by Mahmood Farooqui

Regular price Rs 359.00
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Binding

Language: Hindi

Binding: Paperback

महमूद फ़ारूकी, अनूशा रिजवी और उनके मुटूठी- भर साथियों ने दुनिया को दिखा दिया कि दास्तान अब भी जिन्दा है, या जिन्दा की जा सकती है । लेकिन उसके लिए दो चीजों की जरूरत थी; एक तो कोई ऐसा शख्स जो दास्तान को बखूबी जानता हो और उससे मोहब्बत करता हो । ऐसा शख्स आज बिलकुल मादूम नहीं तो बहुत ही कामयाब जरूर है । दूसरी चीज जो अहिया-ए-दास्तान के लिए लाजिम थी वह था ऐसा शख्स जो उर्दू रवूब जानता हो, फारसी बकदरे-जरूरत जानता हो, और उसे अदाकारी में भी खूब दर्क हो, यानी उसे बयानिया और मकालमा को ड्रामाईं तीर पर अदा करने पर कुदरत हो । उसे उर्दू अदब की, दास्तान की, और खास कर के हमारी ऱवुशनसीबी तसव्वुर करना चाहिए कि दास्तानगोई के दुबारा जन्म की दास्तान के लिए नागुजिर मोतजक्किरह वाला किरदार एक वक्त में और एक जगह जमा हो गए । महमूद फ़ारूकी और मोहम्मद काजिम अपनी कही हुई दास्तानों पर मुश्तमिल एक और किताब बाजार में ला रहे हैं तो दास्तानगोई का एक जदीद रूप भी सामने आ चुका है । --शम्मुर्रहमान फ़ारूकी वक्त का तकाजा था कि अमीर हमजा के मिजाज़ के अलावा और भी तरह को दास्तानें लोगों को सुनाईं जाएँ । इसकी शुरुआत तो 2007 में ही हो गई थी जब मैं और अनूशा ने मिलकर तकसीम-ए-हिन्द पे एक दास्तान मुरत्तब की थी जो पहली जिल्द में शामिल है । अमीर हमजा की दास्तानों का जादू हमेशा सर चढ़कर बोला है और आगे भी बोलता रहेगा । मगर आज के जमाने में उन दास्तानों के अलावा भी बहुत से ऐसे अफ़साने हैं जो सुनाए जाने का तकाजा करते हैं । इसलिए स्वायती दास्तानों को इख्तियार करने के साथ-साथ मैंने और ऐसी चीजें तशकील दी हैं जिन्हें दास्तानज्ञादियाँ कहें तो नामुनासिब ना होगा । ये दास्तानजादियाँ बिलवासता हमारे अहद को और दीगर सच्चाइयों और पहलुओं पर रोशनी डालती हैं जिन्हें हमारे सामईंन और नाजिरीन बेतकल्लुफ समझ सकते हैं । --महमूद फ़ारूकी

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