स्त्रिय: समस्ता: सकला जगत्सु तव देवि भेदा: । संपूर्ण सृष्टि की महिलाएँ, हे देवि, वस्तुत: तुम्हारे ही विभिन्न स्वरूप हैं । स्त्रियों के विभिन्न स्वरूपों की डोर पकड़कर आदिशक्ति के मूल स्वरूप को समझनाय और शक्ति के नाना रूपों के आईनो में आज से लेकर आर्षकालीन समाज की स्त्रियों की ढेरों लोकगाथाओं, महागाथाओं, आख्यानों को नए सिरे से पकड़कर व्याख्यायित कर पाना–यही इस विचित्र पुस्तक का मूल अभीष्ट है । यह न विशुद्ध कथापरक उपन्यास है, न कपोलकल्पित मिथकों की लीला और न ही एक वैज्ञानिक इतिहास । मानव–मन के गोपनीय और रहस्यमय अंश से लेकर महाकाव्यकारों की उदात्त कल्पना के बिंदुओं तक सभी यहाँ हैंय कभी जुड़ते, कभी छिटकते, कभी एक साथ जुड़ते–छिटकते हुए । जीवन की ही तरह देवी की ये गाथाएँ भी कभी कालातीत गहराइयाँ मापती हैं, तो कभी समकालीन इतिहास में कदमताल करती हैं । इन गाथाओं में वे सभी द्वैत मौजूद हैं, जिनसे एक औसत भारतीय का मन–संसार बनता है, अपने सभी उजले–स्याह राग–विराग समेत! अपने मानाभिमान, दर्प, आक्रोश, करुणा और ममत्व में यही वे बिंब हैं, जिनसे सृष्टि चलती है, जीवन चलता है । साहित्य उपजता है और लोकगाथाएँ रची जाती हैं ।
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