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Devrani Jethani Ki Kahani

Devrani Jethani Ki Kahani

by P. Gauridutt

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Author: P. Gauridutt

Languages: Hindi, English

Number Of Pages: 71

Binding: Paperback

Package Dimensions: 8.4 x 5.5 x 0.3 inches

Release Date: 01-06-2019

Details: Product Description न केवल अपने प्रकाशन वर्ष (1870), बल्कि अपनी निर्मिति के लिहाज से भी पं. गौरीदत्त की कृति 'देवरानी जेठानी की कहानी' को हिन्दी का पहला उपन्यास होने का श्रेय जाता है। किंचित् लडख़ड़ाहट के बावजूद हिन्दी उपन्यास-यात्रा का यह पहला कदम ही आश्वस्ति पैदा करता है। अन्तर्वस्तु इतनी सामाजिक कि तत्कालीन पूरा समाज ही ध्वनित होता है, मसलन— बाल विवाह, विवाह में फिजूलखर्ची, स्त्रियों की आभूषणप्रियता, बँटवारा, वृद्धों- बहुओं की समस्या, शिक्षा, स्त्री-शिक्षा; यानी अपनी अनगढ़ ईमानदारी में उपन्यास कहीं भी चूकता नहीं। लोकस्वर में सम्पृक्त भाषा इतनी जीवन्त है कि आज के साहित्यकारों को भी दिशा-निर्देशित करती है। दृष्टि का यह हाल है कि इस उपन्यास के माध्यम से हिन्दीपट्टी में नवजागरण की पहली आहट तक को सुना जा सकता है। कृति का उद्देश्य बारम्बार मुखर होकर आता है किन्तु वैशिष्ट्य यह कि यह कहीं भी आरोपित नहीं लगता। डेढ़ सौ साल पूर्व संक्रमणकालीन भारत की संस्कृति को जानने के लिए 'देवरानी जेठानी की कहानी' (उपन्यास) से बेहतर कोई दूसरा साधन नहीं हो सकता।. About the Author डॉ. राम निरंजन परिमलेन्दु के अनुसार इनका जन्म सन् 1836 में लुधियाना में हुआ और मृत्यु सन् 1890 में मेरठ में। आप 'नागरी' की सेवा में दीवानगी की हद तक समर्पित रहे। हिन्दी प्रचार में डॉ. लक्ष्मीसागर वाष्र्णेय ने इन्हें प्रतापनारायण मिश्र, महावीर प्रसाद द्विवेदी, बालमुकुन्द गुप्त आदि की पंक्ति में रखा था। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपने 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' में गौरीदत्त जी का बड़े आदर से उल्लेख किया है— 'भारतेन्दु के अस्त होने के कुछ पहले ही नागरी प्रचार का झंडा पं. गौरीदत्त ने उठाया। वे मेरठ के रहनेवाले सारस्वत ब्राह्मण थे और मुदर्रिसी करते थे। अपनी धुन के ऐसे पक्के थे कि चालीस वर्ष की अवस्था हो जाने पर इन्होंने अपनी सारी जायदाद 'नागरी प्रचार' के लिए लिखकर रजिस्ट्री करा दी और आप संन्यासी होकर नागरी प्रचार का झंडा हाथ में लिये चारों ओर घूमने लगे।'.

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