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Dola Bibi Ka Mazaar
Dola Bibi Ka Mazaar
by Jabir Hussain
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Number Of Pages: 210
Binding: Hardcover
मैंने कब कहा कि मैं कहानियां लिखता हूँ | मैं तो बस अपने आसपास जो कुछ देखता हूँ, महसूस करता हूँ, वही लिखता हूँ | मेरे किरदार मेरी उन अनगिनत लडाइयों की खोज और उपज हैं, जो दशकों बिहार के गांवों में लड़ी गयी हैं, बल्कि आज भी लड़ी जा रही हैं | मैंने ये भी कब कहा कि मेरे पास गांवों के दुखों का इलाज हैं | मैं तो बस अपने किरदारों के यातनापूर्ण सफरनामे का एक अदना साक्ष्य हूँ | एक साक्ष्य, जो कभी अपने किरदारों की रूह में उतर जाता है, और कभी किरदार ही जिस के वजूद का हिस्सा बन जाते हैं | मैं तटस्थ नहीं हूँ | मैं तटस्थ कभी नहीं रहा | आगे भी मेरे तटस्थ होने की कोई गुंजाइश नहीं है | मैं खुद अपनी लडाइयों का एक अहम् हिस्सा रहा हूँ , आज भी हूँ | मेरी नजर में, तटस्थता किसी भी संवेदनशील आदमी या समाज के लिए आत्मघाती होती है | मैंने झंडे उठाये हैं, परचम लहराये हैं, नारे बुलंद किये हैं | जो ताकतें सदियों राज और समाज को अपनी मर्जी से चलाती रही हैं, उनकी बख्शी हुई यातनाएं झेली हैं | लेकिन अपनी डायरी के पन्ने स्याह करते वक्त मैंने, कभी भी, इन यातनाओं को बैसाखी की तरह इस्तेमाल नहीं किया है | न ही मैंने इन्हें अपने डायरी-शिल्प का माध्यम ही बनने दिया है | अतः मैं आप से कैसे कहूँ कि इस पुस्तक में शामिल तहरीरों को आप कहानी के रूप में स्वीकारें |
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