Dwabha
by Namvar Singh
Original price
Rs 695.00
Current price
Rs 599.00


- Language: Hindi
- ISBN: 9789388183222
- Category: Research & Criticism
Product Description
नामवर सिह अब एक विशिष्ट शख्सियत की देहरी लॉघकर एक लिविंग 'लीजेंड' हो चुके है | तमाम तरह क विवादों, आरोपों और विरोध के साथ असंख्य लोगों की प्रसंशा से लेकर 'भक्ति-भाव तक को समान दूरी से स्वीकारने वाले नामवर जी ने पिछले दशकों में मच से इतना बोला है कि शोधकर्ता लगातार उनके व्याख्यानों को एकत्रित कर रहे हैं और पुस्तकों के रूप में पाठकों क सामने ला रहे है । यह पुस्तक भी इसी तरह का एक प्रयाप्त है लेकिन इसे किसी शोधार्थी ने नहीं उनके पुत्र विजय प्रकाश ने संकलित किया है । इस संकलन में मुख्यत: उनके व्याख्यान हैं और साथ ही विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लिखे-छपे उनके कुछ आलेख भी है । नामवर जी ने अपने जीबन-काल मे कितने विषयों को अपने विचार और मनन विषय बनाया होगा, कहना मुश्किल है | अपने अपार और सतत अध्ययन तथा विस्मयकारी स्मृति के चलते साहित्य और समाज से लेकर दर्शन और राजनीति तक पर उन्होंने समान अधिकार से सोचा और बोला । इस पुस्तक में संकलित आलेख और व्याख्यान पुन: उनक सरोकारों की व्यापकता का प्रमाण देते हैं | इनमें हमें सासांस्कृतिक बहुलतावाद, आधुनिकता, प्रगतिशील आन्दोलन. भारत की जातीय विविधता जैसे सामाजिक महत्त्व के विषयों के अलावा अनुवाद, कहानी का इतिहास, कविता और सौन्दयंशास्त्र, पाठक और आलोचक क आपसी सम्बन्थ जैसे साहित्यिक विषयों पर भी आलेख और व्याख्यान पढने को मिलेंगे । पुस्तक में हिन्दी और उर्दू के लेखकों-रचनाकारों पर केन्द्रित आलेखों के लिए एक अलग खंड रखा गया हैं, जिसमेँ पाठक मीरा, रहीम, संत तुकाराम, प्रेमचंद राहुल सांकृत्यायन, त्रिलोचंन, हजारीप्रसाद द्विवेदी, महादेवी वर्मा, परसाई, श्रीलाल शुक्ल, गालिब और सज्जाद ज़हीर जैसे व्यक्तित्वों पर कहीं संस्मरण के रूप में तो कहीं उन पर आलोचकीय निगाह से लिखा हुआ गद्य पढेगे । बानगी के रूप में देश की सास्कृतिक विविधता पर मँडरा रहे संकट पर नामवर जी का कहना है : 'संस्कृति एकवचन शब्द नहीं है, संस्कृतियाँ होती हैं... सभ्यताएँ दो-चार होगी लेकिन संस्कृतियाँ सैकडों होती हैँ..सांस्कृतिक बहुलता का नष्ट होते हुए देखकर चिंता होती है और फिर विचार के लिए आवश्यक स्रोत ढूँढने पड़ते हैं 1' यह पुस्तक ऐसे ही विचार-स्रोतों का पुंज है ।