चैतन्य महाप्रभु कृष्ण के अवतार माने गये है। 1486 में बंगाल के छोटे से गाँव में जन्मे चैतन्य महाप्रभु बचपन से ही बहुत प्रतिभाशाली थे। छोटी उम्र में ही उन्होंने सभी धार्मिक ग्रंथों का गहराई से अध्ययन कर उन्हें कण्ठस्थ भी कर लिया था। केवल अड़तालीस वर्ष के छोटे से जीवन काल में उन्हें अपने समय का सबसे महान और महत्त्वपूर्ण विद्वान् माना जाता था। देश भर में भ्रमण करके उन्होंने संकीर्तन और ‘हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे’ का मूल मंत्र का संदेश देश के कोने-कोने में फैलाया। कृष्ण भक्ति में लीन होकर कृष्ण का नाम भजना और साथ-साथ आनंद में नाचना, इसकी शुरुआत उन्होंने ही की और यही आज दुनिया के कोने-कोने में इस्कान (ISKON) के नाम से जाना जाता है। राजेन्द्र मोहन भटनागर ने अपनी इस कृति ‘गौरांग’ के माध्यम से चैतन्य महाप्रभु के जीवन का ऐसा सुन्दर एवं सजीव चित्रण किया है कि पाठक इसको पढ़ते समय यह अनुभव करता है कि वह चैतन्य महाप्रभु को अपने सामने चलता-फिरता और प्रवचन देता हुआ देख रहा है।
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