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Gul e Naghma
Gul e Naghma
by Firaq Gorakhpuri
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Number Of Pages: 280
Binding: Hardcover
‘फ़िराक़’ साहब ने उर्दू शायरी को एक बिलकुल नया आशिक़ दिया है और उसी तरह बिलकुल नया माशूक भी। इस नये आशिक़ की एक बड़ी स्पष्ट विशेषता यह है कि इसके भीतर एक ऐसी गम्भीरता पायी जाती है, जो उर्दू शायरी में पहले नज़र नहीं आती थी। ‘फ़िराक़’ साहब के काव्य में मानवता की वही आधारभूमि है और उसी स्तर की है जैसे ‘मीर’ के यहाँ, परन्तु उसके साथ ही उनके काव्य में ऐसी तीव्र प्रबुद्धता है, जो उर्दू के किसी शायर से दब के नहीं रहती, चाहे ज़्यादा ही हो। अतएव, उनके आशिक़ में एक तरफ़ तो आत्मनिष्ठ मानव की गम्भीरता है, दूसरी तरफ़ प्रबुद्ध मानव की गरिमा है। भारत, भारत-प्रेम और भारतीय परिवेश को लेकर उर्दू कविता में बहुत-कुछ कहा-लिखा गया है, लेकिन ज़ाहिर है - उनके स्वरों और ध्वनियों में भारतीयता और मानवता की वह झंकार नहीं सुनाई देती जो ‘फ़िराक़’ की यहाँ मौजूद है। ‘गुले-नग़मा’ की कविताएँ इस बात का ताज़ा मिसाल हैं कि कवि ने भारतीय संस्कृति की आत्मीयता, रहस्यमयता और व्यक्तित्व को अपनी कल्पना और आत्मा में समा लिया है। शायद यही वजह है कि ‘गुले-नग़मा’ की कविताओं में भारतीय आत्मा की धड़कनें गूँजती सुनाई देती हैं और उनका संगीत भारत की आत्मा का रंगारंग दर्शन कराता है।... ‘गुले-नग़मा’ सन् 1961 में ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ तथा 1970 के ‘भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार’ द्वारा सम्मानित है।
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