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Hind Swaraj

Hind Swaraj

by Mohandas Karamchand Gandhi

Regular price Rs 135.00
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Binding

Language: Hindi

Binding: Paperback

'हिन्द स्वराज’ पाठक और सम्पादक के बीच बातचीत की शैली में लिखा गया है। लन्दन-प्रवास के दौरान गांधी जिन क्रान्तिमार्गी अराजकतावादियों से मिले थे उनमें दामोदर विनायक सावरकर, टी.एस.एस. राजन, वीरेन्द्र नाथ चट्टोपाध्याय, वी.वी.एस. अय्यर और डॉ. प्राणजीवन मेहता प्रमुख थे। वस्तुत: 'हिन्द स्वराज’ स्वयं गांधी के शब्दों में डॉ. प्राणजीवन मेहता से हुई बातचीत की लगभग जस की तस प्रस्तुति है। इस रहस्य का उद्घाटन उन्होंने 21 फरवरी सन् 1940 को बंगाल की मलिकंदा की बैठक में किया था। डॉ. प्राणजीवन दास जगजीवन दास मेहता (1864-1932) बम्बई के ग्रांट मेडिकल कॉलेज के स्नातक थे। बू्रसेल्स से एम.डी. और लन्दन से बैरिस्टरी की उपाधियाँ अर्जित करने के बाद सन् 1889 में हिन्दुस्तान लौट आए थे। यहाँ गुजरात के ईडर रियासत के मुख्य चिकित्सा अधिकारी और बाद में दीवान के पद पर रहने के बाद वह रंगून (बर्मा) चले गए थे। जब सन् 1909 में गांधी लन्दन पहुँचे थे तो डॉ. मेहता संयोग से वहीं थे। एक महीने दोनों साथ एक होटल में रहे थे। गांधी से डॉ. मेहता लगभग पाँच साल बड़े थे और उनके प्रति गहरा स्नेह भाव रखते थे। स्वयं गांधी के शब्दों में वह उन्हें (गांधी को) मूर्ख और भावुक मानते थे। अपने समय की चिकित्सा और कानून की उच्चतम उपाधियों से लैस डॉ. मेहता एक प्रबल बुद्धिवादी तार्किक थे। गांधी उन्हें क्रान्तिकामी अराजकतावादियों में प्रमुख मानते थे। जो विचार बिन्दु 'हिन्द स्वराज’ के विषय बने उन पर दोनों के बीच लगभग एक माह तक विचार-विमर्श चलता रहा। अन्तत: डॉ. मेहता गांधी के विचारों से सहमत हो गए। गांधी को पहले मूर्ख और भावुक समझने वाले उन्हीं डॉ. प्राणजीवन मेहता ने 28 अगस्त सन् 1912 को रंगून के लिए पोर्ट सईद पर जहाज की प्रतीक्षा करते हुए हिन्दुस्तान में गोपाल कृष्ण गोखले को लिखा कि मनुष्यता और मातृभूमि के उत्थान के लिए गांधी जैसे विरल व्यक्तित्व इस पृथ्वी पर यदा-कदा ही अवतरित होते हैं। —वीरेन्द्र कुमार बरनवाल
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