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Is Tarah Mein

Is Tarah Mein

by Pawan Karan

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Author: Pawan Karan

Languages: Hindi

Number Of Pages: 102

Binding: Hardcover

Package Dimensions: 8.4 x 5.5 x 0.5 inches

Release Date: 01-01-2017

Details: पवन करण की कविताएँ जीवन की स्वाभाविक हरकत की तरह आती हैं। वे हर जगह कवि हैं। इसीलिए उनकी कविताएँ हर कहीं से उग आती हैं। न उन्हें विषयों के लिए दिमाग को किसी अनोखी दुनिया में दौड़ाना पड़ता है, न कविता को वाणी देने के लिए भाषा के साथ कोई शारीरिक-मानसिक अभ्यास करना पड़ता है। दुनिया में रहना-जीना जितना प्राकृतिक है, उनकी कविताएँ भी लगभग वैसी ही हैं। त्यौहार पर घर की जाते आदमी का उल्लास हो या शहर के सबसे पुराने बैंड का रुदन जो सिर्फ उसे सुनाई देता है, या घर वह पुरानी कैंची जो 'फिलहाल घर के कोष में नोट के दो टुकड़ों की तरह' रखी है। और ताला, 'यह राजदार हमारा अनुपस्थिति में हमारी कभी झुकता नहीं टूट भले जाए।' या फिर बिजली के खम्भे जो रात के सुनसान में 'जब उनके नीचे से गुजरता है चौकीदार उसके सिर पर हर बार रोशनी की उजली टोपी पहना देते हैं' और जब वह देर तक वापस नहीं आता तो उसे 'अपने नीचे लेटे कुत्तों में से किसी एक को भेजते हैं उसे देखने।' ये कविताएँ हमें व्याकुल करके किसी बदलाव की कसम खाने के लिए नहीं उकसातीं, बल्कि जहाँ हम हैं, जिस भी मुद्रा में वहीं हमारे भीतर आकर वहीं से हमें बदलना शुरू कर देती हैं, और इनसे गुजरकर जब हम वापस दुनिया के रूबरू होते हैं, सबसे पहले हमें अपनी दृष्टि नई लगती है, और दुनिया के अनेक कच्चे जोड़ अचानक हमें दिखाई देने लगते हैं जिन्हें फौरन रफू की या मरम्मत की जरूरत है।

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