Itihas Ki Punarvyakhya
Itihas Ki Punarvyakhya
by Romila Thapar
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Language: Hindi
Number Of Pages: 142
Binding: Hardcover
यदि किसी राष्ट्र के वर्तमान पर उसका अतीत अथवा इतिहास अनिष्ट की तरह मँडराने लगे तो उसके कारणों की पड़ताल नितांत आवश्यक है । इतिहास की पुनर्व्याख्या इसी आवश्यकता का परिणाम है । विज्ञानसम्मत इतिहास-दृष्टि के लिए प्रख्यात जिन विद्वानों का अध्ययन-विश्लेषण इस कृति में शामिल है, उसे दो विषयों पर केंद्रित किया गया है । पहला, ' भारतीय इतिहास के अध्ययन के लिए नई दृष्टि, और दूसरा, 'सांप्रदायिकता और भारतीय इतिहास-लेखन' । सर्वविदित है कि इतिहास के स्रोत अपने समय की तथ्यात्मकता में निहित होते हैं, लेकिन इतिहास तथ्यों का संग्रह- भर नहीं होता । उसके लिए तथ्यों का अध्ययन आवश्यक है और अध्ययन के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण । इसके बिना उन प्रवृत्तियों को समझना कठिन है, जो पिछले कुछ वर्षों से भारतीय इतिहास के मिथकीकरण का दुष्प्रयास कर रही हैं । इसे कई रूपों में रेखांकित किया जा सकता है । उदाहरण के लिए, अतीत को लेकर एक काल्पनिक श्रेष्ठताबोध, वर्तमान के लिए अप्रासंगिक पुरातन सिद्धांतों का निरंतर दोहराव, संदिग्ध और मनगढ़ंत प्रमाणों का सहारा, तथ्यों का विरूपीकरण आदि । स्वातंत्र्योत्तर भारत में हिंदू और मुस्लिम परंपरावादियों में इसे समान रूप से लक्षित किया जा सकता है । मस्जिदों में बदल दिए गए तथाकथित मंदिरों के पुनरुत्थान- पुनर्निर्माण या फिर पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित मस्जिदों में नए सिरे से उपासना के प्रयास ऐसी ही प्रवृत्तियों को उजागर करते हैं । वस्तुत: ज्यों-ज्यों इतिहास और परंपरा के वैज्ञानिक मूल्यांकन की कोशिशें हो रही हैं, त्यों-त्यों उसके समानांतर मिथकीकरण के प्रयासों में भी तेजी आ रही है । कहने की आवश्यकता नहीं कि ऐसे प्रयासों के पीछे राजनीति-प्रेरित कुछ इतर स्वार्थों की पूर्ति. भी एक उद्देश्य है, जिसका भंडाफोड़ करना आज की ऐतिहासिक जरूरत है, क्योंकि प्रजातीय और धार्मिक श्रेष्ठता का दंभ संसार में कहीं भी टकराव और विनाश को आमंत्रण देता रहा है । प्रो. रोमिला थापर के शब्दों में कहें तो '' २०वीं शताब्दी के प्रारंभ में जर्मनी में सामाजिक परिवर्तन की अनिश्चितता और मध्यम वर्ग का विस्तार आर्य-मिथक का उपयोग कर रहे फासीवाद के उदय के मूल कारण थे । इस अनुभव से यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि जातीय मूल और पहचान के सिद्धांतों का उपयोग बड़ी सावधानी से किया जाए, वरना उसके कारण ऐसे विस्फोट हो सकते हैं, जो एक पूरे समाज को तबाह कर दें । इन परिस्थितियों में इतिहास के नाम पर वृहत्तर समाज द्वारा ऐतिहासिक विचारों के गलत इस्तेमाल के तरीकों से इतिहासकार को सावधान रहना होगा ।,' कहना न होगा कि यह मूल्यवान कृति इतिहास और इतिहास-लेखन की ज्वलंत समस्याओं से तो परिचित कराती ही है, आज के लिए अत्यंत प्रासंगिक विचार-दृष्टि को भी हमारे सामने रखती है ।
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