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Jheeni Jheeni Beeni Chadariya
Jheeni Jheeni Beeni Chadariya
by Abdul Bismillah
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Number Of Pages: 208
Binding: Paperback
बिरासत अगर संघर्ष की हो तो उसे अगली पीढ़ी को सौंप देने की कला सिखाता है - अब्दुल बिस्मिल्लाह का उपन्यास - ‘झीनी झीनी बीनी चदरिया’। इस उपन्यास को लिखने से पहले दस वर्षों तक अब्दुल बिस्मिल्लाह ने बनारस के बुनकरों के बीच रहकर उनके जीवन का अध्ययन किया, जिसके कारण इस उपन्यास में बुनकरों की हँसी-खुशी, दुख-दर्द, हसरत-उम्मीद, जद्दोजहद और संघर्ष...यानी सब कुछ सच के समक्ष खड़ा हो जाता है आईना बनकर - यही इस उपन्यास की विशेषता है। बनारस के बुनकरों की व्यथा-कथा कहनेवाला यह उपन्यास न केवल सतत् संघर्ष की प्रेरणा देता है बल्कि यह नसीहत भी देता है कि जो संघर्ष अंजाम तक नहीं पहुँच पाए उसकी युयुत्सा से स्वर को आनेवाली पीढ़ी तक जाने दो। इस प्रक्रिया में लेखक ने शोषण के पूरे तंत्र को बड़ी बारीकी से उकेरा है, बेनकाब किया है। भ्रष्ट राजनीतिक हथकंडों और बेअसर कल्याणकारी योजनाओं का जैसा खुलासा ‘झीनी झीनी बीनी चदरिया’ की शब्द-योजना में नहीं, बल्कि अभिव्यक्ति की कलात्मकता में है जिसके फलस्वरूप इसके पात्र रऊफ चचा, नजबुनिया, नसीबुन बुआ, रेहाना, कमरुन, लतीफ, बशीर और अल्ताफ़ उपन्यास की पंक्तियों में जीवन्त हो उठते हैं और उनका संघर्ष बरबस पाठकों की संवेदना बटोर लेता है। वस्तुतः इस उपन्यासक के माध्यम से हम जिस लोकोन्मुख सामाजिक यथार्थ के रू-ब-रू होते हैं, जिस परिवेश की जीवन्त उपस्थिति से गुज़रते हैं, उसका रचनात्मक महत्त्व होने के साथ ही ऐतिहासिक महत्त्व भी है।
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