Karna Ki Atmakatha (hindi)
Karna Ki Atmakatha (hindi)
by Manu Sharma
Author: Manu Sharma
Languages: Hindi
Number Of Pages: 372
Binding: Hardcover
Package Dimensions: 8.4 x 5.3 x 1.4 inches
Release Date: 01-12-2018
Details: Product Description 'यही तो विडंबना है कि तू सूर्यपुत्र होकर भी स्वयं को सूतपुत्र समझता है, राधेय समझता है; किंतु तू है वास्तव में कौंतेय। br>तेरी मां कुंती है।'' इतना कहकर वह रहस्यमय हंसी हंसने लगा। थोड़ी देर बाद उसने कुछ संकेतों और कुछ शब्दों के माध्यम से मेरे जन्म की कथा बताई। ''मुझे विस्वास नहीं होता, माधव!'' मैंने कहा। ''मैं समझ रहा था कि तुम विस्वास नहीं कसेगे। किंतु यह भलीभाति जानी कि कृष्ण राजनीतिक हो सकता है, पर अविश्वस्त नहीं। ''उसने अपनी मायत्वी हँसी में घोलकर एक रहस्यमय पहेली मुझे पिलानी चाही, चो सरलता से मेरे गले के नीचे उतर नहीं रही थी। वह अपने प्रभावी स्वर में बोलता गया, ''तुम कुंतीपुत्र हो। यह उतना ही सत्य है जितना यह कहना कि इस समय दिन है, जितना यह कहना कि मनुष्य मरणधर्मा है, जितना यह कहना कि विजय अन्याय की नहीं बल्कि न्याय की होती है।'' ''तो क्या मैं क्षत्रिय हूँ?'' एक संशय मेरे मन में अँगड़ाई लेने लगा, 'आचार्य परशुराम ने भी तो कहा था कि भगवान् भूल नहीं कर सकता। तू कहीं-न- कहीं मूल में क्षत्रिय है। जब लोगों ने सूतपुत्र कहकर मेरा अपमान क्यों किया?' मेरा मनस्ताप मुखरित हुआ, ''जब मैं कुंतीपुत्र था तो संसार ने मुझे सूतपुत्र कहकर मेरी भर्त्सना क्यों की?'' ''यह तुम संसार से पूछो। ''हँसते हुए कृष्ण ने उत्तर दिया। ''और जब संसार मेरी भर्त्सना कर रहा था तब कुंती ने उसका विरोध क्यों नहीं किया?''. About the Author मनु शर्मा ११२८ की शरत् पूर्णिमा को अकबरपुर (अब अंबेडकर नगसे, फैजाबाद (उप्र.) में जनमे हनुमान प्रसाद शर्मा लेखन जगत् में 'मनु शर्मा' नाम से विख्यात हैं। लगभग डेढ़ दर्जन उपन्यास, दो सौ कहानियों और अनगिनत कविताओं के प्रणेता श्री मनु शर्मा की साहित्य साधना हिंदी की किसी भी खेमेबंर्दा से दूर, अपनी ही बनाई पगडंडी पर इस विश्वास के साथ चलती रही है कि 'आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों, परसों नहीं तो बरसों बाद मैं डायनासोर के जीवाश्म की तरह पढ़ा जाऊँगा। 'अनेक सम्मानों और पुरस्कारों से विभूषित श्री मनु शर्मा ने साहित्य की लगभग सभी विधाओं में लिखा है; पर कथा आपकी मुख्य विधा है। 'तीन प्रश्न', 'मरीचिका', 'के बोले माँ तुमि अबले', 'विवशिता' एवं 'लक्ष्मणरेखा' आपके प्रसिद्ध सामाजिक उपन्यास हैं। 'पोस्टर उखड़ गया 'सामाजिक कहानियों का संग्रह है। 'मुंशी नवनीतलाल' और अन्य कहानियों में सामाजिक विकृतियों तथा विसंगतियों पर कटाक्ष करनेवाले तीखे व्यंग्य हैं। 'द्रौपदी की आत्मकथा', 'अभिशप्त कथा', 'कृष्ण की आत्मकथा' (आठ भागों में), 'द्रोण की आत्मकथा', 'गांधारी की आत्मकथा' और अब यह अत्यंत रोचक कृति-'कर्ण की आत्मकथा'। सम्मान और अलंकरण-गोरखपुर विश्व- विद्यालय द्वारा डीलिट की मानद उपाधि और उत्तर प्रदेश हिंदी समिति द्वारा 'साहित्य भूषण' विशेष उल्लेख्य हैं।.
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