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Kavi Shailendra : Zindagi Ki Jeet Mein Yakeen

Kavi Shailendra : Zindagi Ki Jeet Mein Yakeen

by Prahlad Agarwal

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Regular price Rs 356.00
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Binding

Number Of Pages: 148

Binding: Hardcover

कुछ अकेले नहीं हैं और पहले भी नहीं हैं—शैलेन्द्र, विद्वज्जनों ने जिनकी ओर नज़र नहीं डाली—ऐसे अनेकानेक लोककवि हैं। यूँ हर ज़माने ने अपने ज़माने की लोकरचना की सादगी की संश्लिष्टता को स्वीकार करने में कोताही की—और होकर यूँ रहा कि समय के साथ वह रंग और गहरा होता चला गया। पीढिय़ाँ-दर-पीढिय़ाँ उनके शब्दों में जि़न्दगी के नए मायने तलाशती रहीं। शैलेन्द्र के गीत हमारे बचपन की गुनगुनाहटों में शामिल होकर आज तक हमसफर हैं। दुनिया-भर की पुरकशिश कविता की तरह उन्होंने जि़न्दगी की पुरपेंच गलियों में आलोकित राजपथ प्रशस्त किया। इतने सरल और लुभावने कि आवारामिज़ाजी से ज़ुबाँ पर चढ़ जाएँ, कदम-ब-कदम जि़न्दगी के फलसफे में तब्दील होते हुए। अपनी मासूम गुनगुनाहटों के शब्द के फनकार का नाम हमें सालों बाद पता चला और इस परिचय के ऊषाकाल में ही वह सितारा टूट गया। जब शैलेन्द्र ने आत्मघात किया, हम उन्नीस साल के थे। इसके चंद महीने पहले ही शैलेन्द्र निर्मित एकमात्र फिल्म ‘तीसरी कसम’ प्रदर्शित हुई थी। नहीं मालूम सच है या झूठ, लेकिन कहा जाता है कि शैलेन्द्र को यकीन था, इसे राष्ट्रपति स्वर्णपदक मिलेगा—और मिला, लेकिन वह दिन देखने के लिए शैलेन्द्र नहीं थे। जनकवि शैलेन्द्र के बहुआयामी रचनात्मक अवदान का आकलन करने की विनम्र कोशिश है यह पुस्तक।
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