Lihaaf
by Ismat Chugtai
Original price
Rs 225.00
Current price
Rs 209.00


- Language: Hindi
- Pages: 208
- ISBN: 9788126727049
- Category: Short Stories
- Related Category: Novella
Product Description
बहैसियत अदबी भाषा उर्दू की ताकत जिन कुछ लेखकों को पढ़ते हुए एक ठोस आकार की शक्ल में नमूदार होती है उनमें इस्मत चुगताई को चोटी के कुछ नामों में शुमार किया जा सकता है। जहाँ तक ज़बान को इस्तेमाल करने के हुनर का सवाल है, बेदी और मंटो में भी वह महारत दिखाई नहीं देती जो उनमें दिखती है। बेदी कहानी को मूर्तिकार की सी सजगता से गढ़ते थे और मंटो की कहानी अपने समय के कैनवास पर अपना आकार खुद लेती थी। लेकिन इस्मत की कहानी भाषा और भाषा में बिंधी हुई सदियों की मानव-संवेदना की चाशनी से इस तरह उठाती है जैसे किसी खौलती हुई कढाई में, भाप को चीरकर कोई मुजस्समा उठ रहा हो। इससे यह नहीं समझ लिया जाना चाहिए कि इस्मत अपनी कहानी में कोई कलात्मक चमत्कार करती हैं, वह जि़न्दगी से अपने सच्चे लगाव को कहानी का जरिया बनाती हैं और जिस शब्दावली का चयन उनकी जबान करती है, वह खुद भी जि़न्दगी से उनके इसी शदीद इश्क से तय होती है। सिर्फ कोई एक शब्द या कोई एक पद, और आपको अपनी आँखों के सामने पूरा एक दृश्य घटित होता दिखता है। 'यह इतना बड़ा चीखता-चिंघाड़ता बम्बई' -इस संग्रह की पहली ही कहानी में यह एक वाक्य आता है, और सच में बम्बई को किसी और तरह से चित्रित करने की ज़रूरत नहीं रह जाती। इसी बम्बई में सरला बेन हैं। 'कभी किसी ने उन्हें हटकर रास्ता देने की ज़रूरत तक न महसूस की। लोग दनदनाते निकल जाते और वह आड़ी होकर दीवार से लग जातीं। - एक कहानी का यह एक वाक्य क्या एक मानव जाति के एक प्रतिनिधि के बरसों का खाका नहीं खींच देता! यही हैं इस्मत चुगताई, जिन्हें यूँ ही लोग प्यार से आपा नहीं कहा करते थे। जिस मुहब्बत से वे अपने किरदारों और उनके दुख-सुख को पकड़ती थीं, वही उनके आपा बन जाने का सर्वमान्य आधार था। इस किताब में उनकी सत्रह एक से एक कहानियाँ शामिल हैं जिनमें प्रसिद्ध 'लिहाफ' भी है। इसमें उन्होंने समलैंगिकता को उस व$क्त अपना विषय बनाया था जब समलैंगिकता के आज जवान हो चुके पैरोकार गर्भ में भी नहीं आए थे। और इतनी खूबसूरती से इस विषय को पकडना तो शायद आज भी हमारे लिए मुमकिन नहीं है। उनकी सोच की ऊँचाई के बारे में जानने के लिए सिर्फ इसी को पढ़ लेना काफी है।