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Logaan

Logaan

by Jabir Hussain

Regular price Rs 202.50
Regular price Rs 225.00 Sale price Rs 202.50
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Binding

Language: Hindi

Binding: Hardcover

ये वो दिन थे, जब नागभूषण पटनायक को फांसी की सज़ा सुनायी गई थी। और उन्होंने जनता के नाम एक कान्तिकारी ख़त लिखा था । इस ख़त की प्रतियां हमारे साथियों के बीच भी बंटी थीं और इस पर गंभीर बहस का दौर चला था। उन चर्चाओं और बहस के दौरान ही गोविन्दपुर का एक बूढ़ा मुसहर बोल उठा था - हम आपकी बात नहीं समझ पाते, बाबू। देश-समाज में हमारी गिनती ही कहां है। सभ्यता और संस्कृति जैसे शब्द हमारे लिए अजनबी हैं। हम तो केवल इतना जानते-समझते हैं कि जिस पैला (बर्तन) में हमें मज़दूरी मिलती है, उसका आधा हिस्सा किसानों ने आटे से भर दिया है। पैला छोटा हो गया है। इससे दी जानेवाली मज़दूरी आधी हो जाती है। जो राज आप बनाना चाहते हैं, उसमें पैला का यह आटा खरोंच कर आप निकाल पाएँगे क्याद्य हमारे लिए तो यही सबसे बड़ा शोषण और अन्याय है। हम इसके अलावा और कोई बात कैसे समझें? बूढ़े मानकी मांझी की शराब के नशे में कही गई यह बात बे-असर नहीं थी। हम उसकी समझ और चेतना देखकर स्तब्ध रह गए थे। मानकी ने ये यह बात मुसहरी में अपने झोंपड़े के सामने पड़ी खाट पर बैठे-बैठे सहज भाव से कह दी थी। मगर हमारे चेहरे पर एक बड़ा सवालिया निशान उभर आया था। कुछ ऐसी ही पंक्तियां बिखर पड़ी हैं जाबिर हुसेन कीक डायरी के इन पन्नों पर जो आपको इन पन्नों से गुज़रने के लिए आमंत्रित करती हैं
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