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Lok-Sahitya Ki Bhoomika
Lok-Sahitya Ki Bhoomika
by Krishnadev Upadhyay
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Binding: Hardcover
इस पुस्तक की रचना लोक-साहित्य के सिद्धान्त ग्रन्थ के रूप में की गयी है। अतएव इसमें लोकगीत, लोक-गाथा, लोक-कथाओं तथा लोकनाट्य के मूल तत्त्वों का सन्निवेश करने का प्रयास हुआ है। प्रस्तुत ग्रन्थ को तीन खण्डों में विभाजित किया गया है— साहित्य, सिद्धान्त और संस्कृति। साहित्य वाले खण्ड में लोक-साहित्य के संकलन की कठिनाइयों तथा पद्धति का उल्लेख करते हुए लोक-साहित्य संग्रहों की योग्यता का वर्णन किया गया है। सिद्धान्त खण्ड के अन्तर्गत लोक-गीत, लोकगाथा, लोक-कथा, लोक-नाट्य के मूल-तत्त्वों एवं उनकी प्रधान विशेषताओं का विवरण है। संस्कृति वाले खण्ड में लोक-साहित्य में लोकसंस्कृति का जैसा चित्रण उपलब्ध होता है उसका सजीव चित्रण उपस्थित करने का प्रयास हुआ है। लोक-साहित्य के सामान्य सिद्धान्तों का सम्यक् विवेचन प्रस्तुत करनेवाला यह सर्वप्रथम मौलिक ग्रन्थ है। लोक-साहित्य के वर्गीकरण की पद्धति, उसका विस्तार, लोक-काव्य और अलंकृत काव्य में भेद, लोक-गाथाओं की विशेषताएँ तथा लोक-कथाओं के मूल तत्व, लोकोक्तयों और मुहावरों का महत्त्व, बच्चों के खेल, पालने के गीत और मृत्यु सम्बन्धी गीत इत्यादि जितने भी विषय लोक-साहित्य में अन्तर्भुक्त होते हैं उन सभी विषयों और समस्याओं का समाधान इस ग्रन्थ में किया गया है। इस सम्बन्ध में पाश्चात्य देशों में जो अनुसन्धान हुआ है उसका अध्ययन कर उन पश्चिमी मनीषियों के मतों का भी प्रतिपादन यथास्थान वर्णित है। इस पुस्तक के प्रणयन में लेखक ने तुलनात्मक दृष्टि से काम लिया है। भारतवर्ष में जो गीत प्रचलित है उसी कोटि का यदि कोई गीत अंग्रेजी साहित्य में उपलब्ध होता है तो उसे भी उद्धृत किया गया है। पालने के गीत, मृत्यु-गीत तथा आवृत्तिमूलक टेक पदों के अध्याय में इस पद्धति का विशेष रूप से अवलम्बन हुआ है। पाद-टिप्पणियों में अंग्रेजी के मूल ग्रन्थों से प्रचुर रूप में उद्धरण दिये गये हैं। इस पुस्तक की प्रामाणिकता के लिए ऐसा करना आवश्यक समझा गया।
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