इस अत्यंत लोकप्रिय पुस्तक-माला की शुरुआत 1960 के दशक में हुई जब पहली बार नागरी लिपि में उर्दू की चुनी हुई शायरी के संकलन प्रकाशित कर राजपाल एण्ड सन्ज़ ने हिन्दी पाठकों को उर्दू शायरी का लुत्फ़ उठाने का अवसर प्रदान किया। इस पुस्तक-माला का संपादन उर्दू के सुप्रसिद्ध संपादक प्रकाश पंडित ने किया था। हर पुस्तक में शायर के संपूर्ण लेखन में से बेहतरीन शायरी का चयन है और पाठकों की सुविधा के लिए कठिन शब्दों के अर्थ भी दिए हैं। प्रकाश पंडित ने हर शायर के जीवन और लेखन पर-जिनमें से कुछ समकालीन शायर उनके परिचित भी थे - रोचक और चुटीली भूमिकाएं लिखी हैं। आज तक इस पुस्तक-माला के अनगिनत संस्करण छप चुके हैं। अब इसे एक नई साज-सज्जा में प्रस्तुत किया जा रहा है जिसमें उर्दू शायरी के जानकार सुरेश सलिल ने हर पुस्तक में अतिरिक्त सामग्री जोड़ी है। मजाज़ (1911-1955) अपनी प्रेम और क्रान्ति से भरपूर शायरी के लिए मशहूर हैं। ग़ज़ल और नज़्म उनकी खासियत थी। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के लिए लिखा तराना ‘ये मेरा चमन, ये मेरा चमन, मैं अपने चमन का बुलबुल हूँ’ आज भी लोकप्रिय है। अपनी ज़िन्दगी में उन्होंने जिससे प्यार किया उसे वे पा न सके और इसी दौर में उन्होंने सबसे खूबसूरत और मोहब्बत भरी ग़ज़लें और नज़्में लिखीं। आखिर के दिनों में उनकी मानसिक हालत खराब हो गई और वे बेतहाशा शराब पीने लग गये थे और एक दिन शराब ही उनकी मौत की वजह बनी।
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