इस अत्यंत लोकप्रिय पुस्तक-माला की शुरुआत 1960 के दशक में हुई जब पहली बार नागरी लिपि में उर्दू की चुनी हुई शायरी के संकलन प्रकाशित कर राजपाल एण्ड सन्ज़ ने हिन्दी पाठकों को उर्दू शायरी का लुत्फ़ उठाने का अवसर प्रदान किया। इस पुस्तक-माला का संपादन उर्दू के सुप्रसिद्ध संपादक प्रकाश पंडित ने किया था। हर पुस्तक में शायर के संपूर्ण लेखन में से बेहतरीन शायरी का चयन है और पाठकों की सुविधा के लिए कठिन शब्दों के अर्थ भी दिए हैं। प्रकाश पंडित ने हर शायर के जीवन और लेखन पर-जिनमें से कुछ समकालीन शायर उनके परिचित भी थे - रोचक और चुटीली भूमिकाएं लिखी हैं। आज तक इस पुस्तक-माला के अनगिनत संस्करण छप चुके हैं। अब इसे एक नई साज-सज्जा में प्रस्तुत किया जा रहा है जिसमें उर्दू शायरी के जानकार सुरेश सलिल ने हर पुस्तक में अतिरिक्त सामग्री जोड़ी है। ‘मजरूह’ न केवल हमें ग़ज़ल की प्राचीन परम्पराओं का उत्तराधिकारी नज़र आता है बल्कि उसके यहां हमें ऐतिहासिक सच्चाइयों की भी सुन्दर झलक मिलती है। खि़ज़ां, बहार, साक़ी, महफ़िल, शराब, पैमाना, गुल, गुलिस्तां, सय्यद इत्यादि परम्परागत शब्दों द्वारा ‘मजरूह’ ने आवश्यकतानुसार इन शब्दों के लिबास में कुछ नये शब्दों द्वारा और भी रंगीनी और खूबसूरती पैदा करने की कोशिश की है।
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