होश सँभालते ही खुद को सियालदह स्टेशन परिसर में भिखारी के रूप में पाया ! किसी शरणार्थी परिवार में जन्मे उस बालक को अपने माता-पिता की याद नहीं थी, स्टेशन के बाहर पड़े ड्रेन-पाइप में वह रातें गुजारता ! उसकी दुनिया रलवे स्टेशन, ड्रेन-पाइप और आसपास की झ्ग्गी-झोपड़ियों तक सिमित थी ! उसका कोई नाम नहीं था ! राहगीरों द्वारा फेंके गये बीडी की टोटी उठाकर फूंकने की आदत के कारन लोग उसे बीडी कहकर पुकारते ! एक उस्ताद से पाकिटमारी, उठाईगीरी आदि सीखकर इस कला को आजमाने के प्रयास में वह पहले दिन ही पकड़ा गया ! उसे कुछ दिनों तक परखने के बाद अपने घरेलू नौकर के रूप में रख लिया ! वहां उसने रसोई का काम सीखा ! एक शिक्षक ने उसे पढ़ने की जिम्मेदारी ली ! दाआबू अकसर अपने काम से अमेरिका या यूरोप के दौरे पर चले जाते, तब बीडी के पास ख़ास काम ण रहता ! वह या तो कहीं जाकर भीख मांगने बैठता या किसी बांग्लादेशी के रेस्तरां में पार्ट-टाइम काम करता या पार्क में बैठकर बीडी फूंकता ! ऐसे में दाआबू ने उसे डायरी लिखने को कहा, बोले कि वह रोज के अनुभवों को अपनी भाषा में लिखना शरू करे ! हां, उसे एत्रिस नाम की एक सुंदरी अंग्रेज युवती से प्रेम भी हो गया था, जिसमें दाआबू को आपत्ति नहीं थी ! भारतीय और पाश्चात्य समाज व्यवस्था में अंतर, वहां का रहन-सहन, उन्मुक्त प्रेम, ड्रग का कहर, स्कूल ड्राप आउट्स, बेकार भत्ता, अमीरों का कुत्ता प्रेम, आवारागर्द युवा वर्ग का जीवन, शराब, सेक्स, एक्स-मॉस पर्व, बड़े क्लुबों की डिनर पार्टी....कुल मिलकर बहुत कुछ था बीडी के पास लिखने के लिए !...
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