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Maine Maandu Nahin Dekha
Maine Maandu Nahin Dekha
by Swadesh Deepak
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Number Of Pages: 332
Binding: Paperback
‘स्वदेश तुम कहां गुम हो गए...’ कृष्णा सोबती|
यह स्वदेश दीपक की सात साल लंबी बीमारी के अनुभवों का दस्तावेज है। इसमें कुछ भी सिलसिलेवार नहीं है, क्योंकि ये खंडित साल हैं। यह किताब न तो बाहरी समय का इतिहास है और न ही किसी मेडिकल जर्नल के लिए लिखा गया पेपर। नौ खंडों में विभाजित इस कृति की विशिष्टता है सच का सामना करने के लिए चुनी गई कोलाज शैली, जो शब्दों के मोंताज, नाटकीय संवादों और विभिन्न कालखंडों में एक साथ यात्रा करती हुई काव्यात्मक तनाव को कभी बिखरने नहीं देती। ये कोलाज एक अंधेरी सुरंग में स्वदेश दीपक के सफर की कहानी कहते हैं, जिनसे वे न सिर्फ बाहर आए, बल्कि पलट कर उस सुरंग को देखने और उसका ब्योरा देने का साहस भी जुटा पाए।
यह स्वदेश दीपक की सात साल लंबी बीमारी के अनुभवों का दस्तावेज है। इसमें कुछ भी सिलसिलेवार नहीं है, क्योंकि ये खंडित साल हैं। यह किताब न तो बाहरी समय का इतिहास है और न ही किसी मेडिकल जर्नल के लिए लिखा गया पेपर। नौ खंडों में विभाजित इस कृति की विशिष्टता है सच का सामना करने के लिए चुनी गई कोलाज शैली, जो शब्दों के मोंताज, नाटकीय संवादों और विभिन्न कालखंडों में एक साथ यात्रा करती हुई काव्यात्मक तनाव को कभी बिखरने नहीं देती। ये कोलाज एक अंधेरी सुरंग में स्वदेश दीपक के सफर की कहानी कहते हैं, जिनसे वे न सिर्फ बाहर आए, बल्कि पलट कर उस सुरंग को देखने और उसका ब्योरा देने का साहस भी जुटा पाए।
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