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Manav Samaj

Manav Samaj

by Rahul Sankrityayan

Regular price Rs 269.00
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Binding

Language: Hindi

Binding: Paperback

मानव समाज – राहुल सांकृत्यायन मानव मनुष्य-समाज से अलग नहीं रह सकता था, अलग रहने पर उसे भाषा से ही नहीं चिन्तन से भी नाता तोडना होता, क्योंकि चिंतन ध्वनिरहित शब्द है! मनुष्य की हर एक गति पर समाज की छाप है! बचपन से ही समाज के विधि-निषेधों को हम माँ के ढूध के साथ पीते हैं, इसलिए हम उनमें से अधिकांश को बंधन नहीं भूषण के तौर पर ग्रहण करते हैं, किन्तु, वह हमारे कायिक, वाचिक कर्मों पर पग-पग पर अपनी व्यवस्था देते हैं, यह उस वक्त मालूम हो जाता है, जब हम किसी को उनका उल्लंघन करते देख उसे असभ्य कह उठाते हैं! सीप में जैसे सीप प्राणी का विकास होता है उसी प्रकार हर एक व्यक्ति का विकास उसके सामाजिक वातावरण में होता है! मनुष्य की शिक्षा-दीक्षा अपने परिवार, ठाठ-बाट, पाठशाला, क्रीडा तथा क्रिया के क्षेत्र में और समाज द्वारा विकसित भाषा को लेकर होती है! ‘मानव समाज’ हिंदी में अपने ढंग की अकेली पुस्तक है! हिंदी और बंगला पाठकों के लिए यह बहुत उपयोगी सिद्ध हुई है!
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