कथाकार और उपन्यासकार के रूप में शिवानी की लेखनी ने स्तरीयता और लोकप्रियता की खाई को पाटते हुए एक नई जमीन बनाई थी जहाँ हर वर्ग और हर रुचि के पाठक सहज भाव से विचरण कर सकते थे । उन्होंने मानवीय संवेदनाओं और सम्बन्धगत भावनाओं की इतने बारीक और महीन ढंग से पुनर्रचना की कि वे अपने समय में सबसे ज्यादा पड़े जाने वाले लेखकों में एक होकर रही । कहानी, उपन्यास के अलावा शिवानी ने संस्मरण और रेखाचित्र आदि विधाओं में भी बराबर लेखन किया । अपने संपर्क में आए व्यक्तियों को उन्होंने करीब से देखा, कभी लेखक की निगाह से तो कभी मनुष्य की निगाह से, और इस तरह उनके भरे-पूरे चित्रों को शब्दों में उकेरा और कलाकृति बना दिया । इस पुस्तक में वंकिम तोमार नाम एक श्रद्धांजलि केशव कहि न जाय पेयेछी छूटी, दिशा प्रवर्त्तक यात्री आमी अरे, एक टी शिशिर बिन्दु!, लोक्खी टी? अब न खि तर, कहाँ गईलै हो,.., मरण सागर पारे, डॉक्टर खजानचन्द्र गंगा कद्र कौन, मेरा भाई तुभ्यं श्री गुरुवे नम: शीर्षक संस्मरण और रेखाचित्रों को संकलित किया गया है । आशा है, शिवानी के कथा-साहित्य के पाठकों को उनकी ये रचनाएँ भी पसंद आएँगी ।
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