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McCluskieganj
McCluskieganj
by Vikas Kumar Jha
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Number Of Pages: 534
Binding: Paperback
‘‘बचे खुचे एंग्लो-इंडियन लोगों की मौत के साथ यह गाँव भी पूरी तरह खत्म हो जाएगा। मि. मैकलुस्की के सपनों का कब्रिस्तान...। एंग्लो-इंडियंस के दर्दनाक इतिहास की कहानी कहता एक बेपनाह सन्नाटा भर रह जाएगा यहां...। उस दर्द को आने वाले समय में कौन महसूस करेगा ?’’ मि. मिलर की आवाज अंधेरे में डूब रही है। रॉबिन को लगा, इस गाँव की चौहद्दी के भीतर की धरती जोरों से धड़क रही है। महसूस कर रहा है वह, इसकी तेज धड़कन को। मनुष्य मूचछत हो सकता है। संज्ञाशून्य हो सकता है। उसके विचार विक्षिप्त हो सकते हैं। पर धरती...मातृभूमि कभी मूचछत...संज्ञाशून्य और विक्षिप्त नहीं हो सकती। इसका अनुराग...प्यार भरी गुनगुनी-सी मीठी उष्मा, धड़कती रहेगी अनंत काल तक।
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