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Muktibodh : Sarjak Aur Vicharak

Muktibodh : Sarjak Aur Vicharak

by Sewaram Tripathi

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Binding

Language: Hindi

Number Of Pages: 312

Binding: Hardcover

उत्तर नेहरू-युग में जैसे-जैसे भारतीय लोकतंत्र ज़नहिंतों से निरपेक्ष होता गया है, वैसे-वैसे साहित्य मुखर रूप से लोकतंत्र के भीतर काम कर रही जन-विरोधी शक्तियों के कठोर आलोचक के रूप में सामने आया है । इसी क्रम में मुक्तिबोध की रचनाएँ और विचार हिन्दी में केद्रीय होते गए हैं । पारंपरिक रसवादी और रोमैंटिक आग्रहों के समानांतर आधुनिक साहित्य ने विचार और बौद्धिकता को केद्रीय महत्त्व दिया है । इस संघर्ष में मुक्तिबोध के रचनात्मक और वैचारिक प्रयासों की महती भूमिका है । प्रो. सेवाराम त्रिपाठी की पुस्तक ‘मुक्तिबोध : सर्जक और विचारक' मुक्तिबोध का विवेचन-मूल्यांकन समग्रता से करती है । मुक्तिबोध की रचनात्मकता कविता, कहानी, उपन्यास, निबंध, आलोचना और पत्रकारिता तक फैली हुई है । इस पुस्तक का महत्त्व यह है कि वह मुक्तिबोध का अध्ययन करने के लिए सभी विधाओं को समेटती है । स्वाभाविक ही है कि ऐसे में लेखक ने मुक्तिबोध के सभी पक्षों पर विस्तृत विचार किया है । सेवाराम त्रिपाठी ने प्रस्तुत पुस्तक में मुक्तिबोध की सर्जना में विचारधारा की भूमिका की पड़ताल की है । मुक्तिबोध हिंदी-रचनाशीलता में एक मुकम्मल और सुसंगत मार्क्सवादी थे । इसका गहरा प्रभाव विशेष रूप से कविता और आलोचना जैसी विधाओं पर पडा है । यह प्रभाव सामान्य न होकर जटिल है । लेखक ने पुस्तक में मुक्तिबोध में उपस्थित रचना और विचारधारा की अंतःक्रिया पर गहन और सूक्ष्म विवेचन किया है । प्रस्तुत संस्करण पुस्तक का दूसरा संस्करण है । इसमें ‘मुक्तिबोध : पुनश्च' शीर्षक से चार नए आलेख जोड़ दिए गए हैं । इन आलेखों में मूल अध्यायों में छूट गई कुछ महत्त्वपूर्ण बातें स्थान पा सकी हैं । पुस्तक न सिर्फ गंभीर अध्येताओं की ज़रूरतों को पूरा करती है, बल्कि सामान्य विद्यार्थियों के लिए भी उपादेय है ।
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