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Nayi Kavita Ka Aatmasangharsh

Nayi Kavita Ka Aatmasangharsh

by Gajanan Madhav Muktibodh

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Binding

Number Of Pages: 192

Binding: Hardcover

कोई रचनाकार, रचनाकार होने की सारी शर्तों को पूरा करता हुआ अपने समय और साहित्य के लिए कैसे और क्यों महत्त्पूर्ण हो जाता है, मुक्तिबोध इन सवालों के अकेले जवाब हैं | एक सर्जक के रूप में वे जितने बड़े कवी हैं, समीक्षक के नाते उतने ही बड़े चिन्तक भी | 'कामायनी : एक पुनर्विचार' तथा 'समीक्षा की समस्याएं' नमक कृतियों के क्रम में 'नै कविता का आत्मसंघर्ष' मुक्तिबोध की बहुचर्चित आलोचना-कृति है, जिसका यह नया संस्करण पाठकों के सामने परिवर्तित रूप में प्रस्तुत है | छायावादोत्तर हिंदी कविता के तात्विक और रूपगत विवेचन में इस कृति का विशेष महत्त रहा है | मुख्या निबंध शामिल हैं, जिनमे नै कविता के सामने उपस्थित तत्कालीन चुनौतियों, खतरों और युगीन वास्तविकताओं के सन्दर्भ में उसकी द्वंद्वात्मकता का गहन विश्लेषण किया गया है | कविता को मुक्तिबोध सांस्कृतिक प्रक्रिया मानते हैं और कवी को एक संस्कृतिकर्मी का दर्जा देते हुए यह आग्रह करते हैं कि अनुभव-वृद्धि के साथ-साथ उसे सौन्दर्यभिरूचि के विस्तार और उसके पुनःसंस्कार के प्रति भी जागरूक रहना चाहिए | उनकी मान्यता है कि आज के कवी की संवेदन-शक्ति में विश्लेषण-प्रवृत्ति की भी आवश्यकता है, क्योंकि कविता आज अपने परिवेश के साथ सर्वाधिक द्वान्द्वास्थिति में है | नई कविता के आत्मद्वन्द्व या आत्मसंघर्ष को मुक्तिबोध ने त्रिविध संघर्ष कहा है, अर्थात-1. तत्व के लिए संघर्ष 2. अभिव्यक्ति को सक्षम बनाने के लिए संघर्ष और 3. दृष्टि-विकास का संघर्ष | इनका विश्लेषण कटे हुए वे लिखते हैं - 'प्रथम का सम्बन्ध मानव-वास्तविकता के अधिकाधिक सक्षम उद्घाटन-अवलोकन से है | दूसरे का सम्बन्ध चित्रण-दृष्टि के विकास से है, वास्तविकताओं की व्याख्याओं से है |' वस्तुतः समकालीन मानव-जीवन और युग-यथार्थ के मूल मार्मिक पक्षों के रचनात्मक उद्घाटन तथा आत्मग्रस्त काव्य-मूल्यों के बजाय आत्मविस्तारपरक काव्यधारा की पक्षधरता में यह कृति अकाट्य तर्क की तरह मान्य है |
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