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Nirupama

Nirupama

by Suryakant Tripathi 'Nirala'

Regular price Rs 135.00
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Binding

Language: Hindi

Number Of Pages: 132

Binding: Paperback

रचनाक्रम की दृष्टि से निरुपमा निराला का चौथा उपन्यास है। पहले के तीन उपन्यासों - अप्सरा, अलका और प्रभावती की तरह इस उपन्यास का कथानक भी घटना-प्रधान है। स्वतंत्रता-आंदोलन के दिनों में, खास कर बंगाल में समाज-सुधार की लहर पूरे उभार पर थी। निराला का बंगाल से घनिष्ट सम्बन्ध रहा, इसलिए उनके उपन्यासों में समाज-सुधार का स्वर बहुत मुखर है। लेकिन इसे समाज-सुधार न कहकर सामंती रूढ़ियों से विद्रोह कहें तो अधिक उपयुक्त होगा। निरुपमा में उन्होंने ऐसे ही विद्रोही चरित्रों की अवतारणा की है। जनवादी चेतना से ओतप्रोत नवशिक्षित तरुण-तरुणियों के रूप में कृष्णकुमार, कमल और निरुपमा के चरित्र, नंदकिशोर नवल के शब्दों में, ‘‘सामंती रूढ़ियों को तोड़कर समाज के सम्मुख एक आदर्श रखते हैं। उनके मार्ग में बाधाएँ आती हैं, पर वे उनसे विचलित नहीं होते और संघर्ष करते हुए अपने लक्ष्य तक पहुँचते हैं।’’ कमल और निरुपमा के माध्यम से निराला ने नारी-जाति की मुक्ति का भी पथ प्रशस्त किया है। सन् 1935 के आसपास लिखा गया निराला का यह उपन्यास हमारे लिए आज भी कितना नया और प्रासंगिक है, यह इसे पढ़कर ही जाना जा सकता है।
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