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Nishkasan

Nishkasan

by Doodhnath Singh

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Regular price Rs 359.00
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Binding

Language: Hindi

Number Of Pages: 143

Binding: Hardcover

..' दाँये देखना ठीक नहीं । ' गुरू जी ने कहा । ' और अगर दाँये गड्‌ढा-गुदढी हो तो गुरू जी?, ' तो ज्यादा बाँयें झुक जाओ । ' गुरू जी बोले । ' और अगर उधर भी हो तो? ' ' तो आगे-पीछे हो जाओ । ' ' और आगे-पीछे भी हो तो? ' ' तो सवाल यह होगा कि तुम उस सुरक्षित, विचारहीन जगह पर पहुँचे ही कैसे?, गुरू जी ने कहा । ' यही तो मेरी भी समझ में नहीं आता गुरू जी!' ..' मान लीजिये आपकी बेटी है तब? मुफ्ती की बेटी थी तब? तब तो सारा प्रशासन सिर के बल खड़ा हो गया था! अपहरण और आपूर्ति में ज्यादा फर्क नहीं है पंडित जी! दोनों में अनिच्छित शोषण है । दोनों में हिंसा है । जबर्दस्त शारीरिक और मानसिक अपमान है । दोनों में बल-प्रयोग है, सिर्फ उसके तरीके में अन्तर है । दोनों में फिरौती है-एक में प्रत्यक्ष, दूसरे में परोक्ष । आप क्या समझते हैं, जो देवी जी वहाँ प्रतिष्ठित पद पर आसीन हैं और इस कुकर्म में लिप्त हैं उनका कोई निहित स्वार्थ नहीं होगा? सिर्फ एक घिनौने मजे के लिए वे ऐसा करती होंगी?...लेकिन नहीं, किसी खटिक की बेटी होने का क्या मतलब? उसे नरक में डालो और हंसो । या उसे आपकी तरह ' अन्य मामलों ' के पूरे पर डालकर रफा-दफा कर दो । ' महामहिम खाँसने लगे । ' ...कटुए, क्रिश्चियन और कम्यूनिस्ट, तीनों देशद्रोही हैं-अन्तत: यह उनका और उनकी पार्टी का खुला- छिपा राजनैतिक नारा है । ..' यह कम्यूनिस्टों की साजिश है सर! ' कुलपति ने कहा । महामहिम ने पीछे खड़े अपने प्रमुख सचिव को देखा, जैसे कह रहे हों, उस दिन लॉन में टहलते हुए मैंने आपको बेकार ही डाँटा था । ' ये फाइल है सर। ' कुलपति ने फाइल प्रमुख सचिव की ओर बढ़ायी । ' नहीं, उसकी अब कोई जरूरत नहीं । ' महामहिम ने हाथ के इशारे से मना किया ।
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