Description
फारसी भाषा, हिन्दी की ही तरह, भारतीय आर्य भाषा उपकुल का एक भाग है । ईरान एवं भारत, दोनों कृषि– प्रधान देश रहे हैं । दोनों की संस्कृतियों में अनेक समानताएँ आज भी विद्यमान हैं । मुग“ल–पूर्व, मुग“ल और मुग“लोत्तर शासन के दौरान हिन्दुस्तान में फारसी भाषा का प्रसार एवं प्रचार अपनी चरम सीमा पर था । कबीरदास, सूरदास, मलिक मुहम्मद जायसी जैसे हिन्दी के कालजयी महान कवियों ने फारसी भाषा के अनेक शब्दों को अपनी भावाभिव्यक्ति का साधन बनाया और उनका रचनात्मक प्रयोग किया । इस प्रकार कहा जा सकता है कि फारसी ने हिन्दी साहित्य की रचनाधर्मिता पर भी अपनी अमिट छाप छोड़ी है । फ’ारसी के अनेक शब्द ऐसे भी हैं जिनका चलन आज ईरान में लगभग समाप्त हो चला है लेकिन हिन्दी में वे अब भी जीवित हैं और साहित्य में ही नहीं, आम बोलचाल की भाषा में प्रयोग किए जा रहे हैं । फारसी के अनेक मुहावरे अनूदित होकर हिन्दी की निधि बन चुके हैं । प्रस्तुत फारसी–हिन्दी शब्दकोश हजारों वर्षों में फैले भारत–ईरान के सांस्कृतिक सम्बन्धों को रेखांकित करनेवाला प्रथम शब्दकोश है । विभिन्न विषयों एवं अलग–अलग परिप्रेक्ष्यों से सम्बन्धित लगभग 25,000 शब्द–प्रविष्टियों से सम्पन्न यह शब्दकोश, जिसमें पुरातन और नवीन दोनों प्रकार की अर्थ–परम्पराओं का समावेश है, प्राचीन और अर्वाचीन शब्दों का सुन्दर मिश्रण है । आशा है, यह शब्दकोश विभिन्न प्रकार के अध्ययनकर्ताओं तथा सामान्य पाठकों सभी के लिए समान रूप से उपयोगी सिद्ध होगा ।