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Phir Bhi Kuchh Log

Phir Bhi Kuchh Log

by Vyomesh Shukla

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Author: Vyomesh Shukla

Languages: Hindi

Number Of Pages: 124

Binding: Hardcover

Package Dimensions: 8.7 x 5.7 x 0.6 inches

Release Date: 01-01-2016

Details: व्योमेश शुक्ल के यहाँ राजनीति कुछ तेवर या अमर्षपूर्ण वक्तव्य लेकर ही नहीं आती बल्कि उनके पास पोलिंग बूथ के वे दृश्य हैं जहाँ भारतीय चुनावी राजनीति अपने सबसे नंगे, षडयंत्रपूर्ण और खतरनाक रूप में प्रत्यक्ष होती है । वहाँ संघियों और संघ-विरोधियों के बीच टकराव है, फर्जी वोट डालने की सरेआम प्रथा है, यहाँ कभी भी चाकू और लाठी चल सकते हैं लेकिन कुछ ऐसे निर्भीक, प्रतिबद्ध लोग भी हैं जो पूरी तैयारी से आते हैं और हर साम्यदायिक धाँधली रोकना चाहते हैं । ' बूथ पर लड़ना ' शायद हिंदी की पहली कविता है जो इतने ईमानदार कार्यकर्ताओं की बात करती है जिनसे खुद उनकी ' सेकुलर ' पार्टियों के नेता आजिज आ जाते हैं, फिर भी वे हैं कि अपनी लड़ाई लड़ते रहने की तरकीबें सोचते रहते हैं । ऐसा ही इरादा और उम्मीद ' बाइस हजार की संख्या बाइस हजार से बहुत बड़ी होती है ' में है जिसमें भूतपूर्व कुलपति और गांधीवादी अर्थशास्त्र के बीहड़ अध्येता दूधनाथ चतुर्वेदी को लोकसभा का कांग्रेस का टिकट मिलता है किंतु समूचे देश की राजनीति इस 75 वर्षीय आदर्शवादी प्रत्याशी के इतने विरुद्ध है कि चतुर्वेदी छठवें स्थान पर बाइस हजार वोट जुटाकर अपनी जमानत जब्त करवा बैठते हैं और बाकी बची प्रचार सामग्री का हिसाब करने बैठ जाते हैं तथा कविता की अंतिम पंक्तियाँ यह मार्मिक, स्निग्ध, सकारात्मक नैतिक ' एसर्शन, करती हैं ' कि बाइस हजार एक ऐसी संख्या है 7 जो कभी भी बाइस हजार से कम नहीं होती ' । व्योमेश की ऐसी राजनीतिक कविताएँ लगातार भूलने के खिलाफ खड़ी हुई हैं और वे एक भागीदार सक्रियतावादी और चश्मदीद गवाह की रचनाएँ हैं जिनमें त्रासद प्रतिबद्धता, आशा और एक करुणापूर्ण संकल्प हमेशा मौजूद हैं ।... .यहाँ यह संकेत भी दे दिया जाना चाहिए कि व्योमेश शुक्ल की धोखादेह ढंग से अलग चलने वाली कविताओं में राजनीति कैसे और कब आ जाएगी, या बिल्‍कुल मासूम और असम्बद्ध दिखने वाली रचना में पूरा एक भूमिगत राजनीतिक पाठ पैठा हुआ है, यह बतलाना आसान नहीं है ।.. .ये वे कविताएँ हैं जो ' एजेंडा ', ' पोलेमिक ' और कला की तिहरी शर्तो पर खरी उतरती हैं । विश्व खरे

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