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Pitrisatta Ke Naye Roop: Stree Aur Bhumandalikaran

Pitrisatta Ke Naye Roop: Stree Aur Bhumandalikaran

by Rajendra Yadav

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Author: Rajendra Yadav

Languages: Hindi

Number Of Pages: 227

Binding: Paperback

Package Dimensions: 8.4 x 5.4 x 0.6 inches

Release Date: 01-11-2019

Details: भूमंडलीकरण कहता है कि उसके तहत हुआ बाजारों का एकीकरण लैंगिक रूप से तटस्थ है अर्थात वह मर्दवादी नहीं है। यह एक ऐसा दावा है जो कभी पुनर्जागरण के मनीषियों ने भी नहीं किया था। भूमंडलीकरण इससे भी एक कदम आगे जाकर कहता है कि नारीवाद की किसी किस्म से कोई ताल्लुक न रखते हुए भी उसने स्त्री के शक्तीकरण के क्षेत्र में अन्यतम उपलब्धियाँ हासिल की हैं। सवाल यह है कि परिवार, विवाह की संस्था, धर्म और परंपरा को कोई क्षति पहुँचाने का कार्यक्रम अपनाए बिना यह चमत्कार कैसे हुआ? स्त्री को प्रजनन करने या न करने का अधिकार नहीं मिला, न ही उसके प्रति लैंगिक पूर्वग्रहों का शमन हुआ, न ही उसे इतरलिंगी सहवास की अनिवार्यताओं से मुक्ति मिली और न ही उसकी देह का शोषण खत्म हुआ - फिर बाजार ने यह सबलीकरण कैसे कर दिखाया? खास बात यह है कि भूमंडलीकरण खुद को लोकतंत्र का पैरोकार बताता है और बाजार की चौधराहट का कट्टर समर्थक होते हुए भी एक सीमा तक राज्य के हस्तक्षेप के लिए गुंजाइश छोड़ता है; लेकिन आधुनिकतावाद के गर्भ से निकली अधिकतर संस्थाओं और विचारों को पुष्ट करनेवाला यह भूमंडलीकरण नारीवाद की उपेक्षा करता है। दरअसल इसका सूत्रीकरण अस्सी और नब्बे के उन दशकों में हुआ जिनमें नारीवाद अपने ही गतिरोधों से जूझ रहा था। इसी जमाने में भूमंडलीकरण ने आधुनिक विचारधाराओं में सिर्फ नारीवाद को ही असफल घोषित किया और इस तरह पूँजीवादी आधुनिकता ने पहली बार पितृसत्ता के खिलाफ संघर्ष का दायित्व पूरी तरह त्याग दिया। मार्च 2001 में प्रकाशित ‘हंस’ के ‘स्त्री-भूमंडलीकरण: पितृसत्ता के नये रूप’ विशेषांक में यह शिनाख्त करने की कोशिश की गई थी कि श्रमिकों की एक विशाल फौज के रूप में स्त्री को आत्मसात करनेवाले भूमंडलीकरण में नर-नारी संबंधों के विभिन्न समीकरण क्या हैं और उसके तत्वावधान में स्त्री कितने प्रतिशत व्यक्ति बनी है और कितने प्रतिशत वस्तु। ‘पितृसत्ता के नये रूप: स्त्री और भूमंडलीकरण’, कुछ रचनाओं को छोड़कर उसी अंक का पुस्तक रूप है।

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