प्रेमचंद की कथा-परंपरा को विकसित करनेवाले सुविख्यात कथाकार यशपाल के लिए साहित्य एक ऐसा शास्त्र था, जिससे उन्हें संस्कृति का पूरा युद्ध जितना था ! और उन्होंने जीता ! प्रत्येक स्टार पर वे सजग थे ! विचार, तर्क, व्यंग्य, कलात्मक सौंदर्य, मर्म-ग्राह्यता-हर स्तर पर उन्होंने अपनी प्रतिभा का प्रमाण दिया ! समाज में जहाँ कहीं भी शोषण और उत्पीडन था, जहाँ कहीं भी रूढ़ियों, परम्पराओं, नैतिकताओं, धर्म और संस्कारों की जकड में जीवन कसमसा रहा था, यशपाल की दृष्टि वहीँ पड़ी और उन्होंने पूरी शक्ति से वही प्रहार किया ! इसी दृष्टि को लेकर उन्होंने उस इतिहास-क्षेत्र में प्रवेश किया जहाँ के भीषण अनुभवों को भव्य और दिव्य कहा गया था ! उन्होंने उस मानव-विरोधी इतिहास की धज्जियाँ उडा दी ! व्यंग्य उनकी रचना में तलवार की तरह रहा है और वे रहे हैं नए समाज की पुनर्रचना के लिए समर्पित एक योद्धा ! मर्मभेदी दृष्टि, प्रौढ़ विचार और क्रन्तिकारी दर्शन ने उन्हें विश्व के महानतम रचनाकारों की श्रेणी में ला बिठाया है ! ये कहानियां उनकी इसी तेजोमय यात्रा का प्रमाण जुटती हैं !
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